Tuesday, April 30, 2013

IIMCAA Statement on HC Order in Nirupama Case

Hon. Jharkhand High Court quashed criminal proceedings against Priyabhanshu Ranjan in Nirupama Pathak Murder Case today. 

We have from the beginning believed that Nirupama was killed by her family members on April 29 three years ago. But the administration under pressure was trying to implicate Priyabhanshu. 

Today's judgement has upheld our belief in Priyabhanshu that he was in no way involved in Niru's death. In fact her death was the biggest loss for him. 

While our demand to clear Priyabhanshu name has been met with the HC order. Our fight for justice continues. We will not rest till Niru's killers... her family is punished. R.I.P. Niru.


Mukesh Kaushik
President
IIMC Alumni Association

Wednesday, June 13, 2012

न्याय की पीठ पर पड़ रहे हैं जाति के कोड़े

आनंद सौरभ उपाध्याय

गैर ब्राह्मणों की पर्याप्त मौजूदगी के बावजूद भारतीय राज्य व्यवस्था ब्राह्मण है. नहीं तो कोई वजह नहीं है कि नंगी आंखों से भी साफ दिख रही प्यार की कहानी को बलात्कार बनाया जाए. सत्ता और व्यवस्था के साथ रुपया भी ब्राह्मण है. ये आपकी मति को भ्रष्ट कर देता है. सच और झूठ के तराजू को लड़खड़ा देता है. निरुपमा पाठक और प्रियभांशु रंजन की मोहब्बत ब्राह्मण साजिशों के चक्कर में अंजाम तक नहीं पहुंच सकी. दोनों मेरे सहपाठी रहे इसलिए दोनों की प्रेम कहानी का प्रत्यक्ष गवाह मुझे माना जा सकता है अगर ब्राह्मण कानून इसकी इजाजत देता हो. निरुपमा आज हमारे बीच नहीं है और प्रियभांशु जिस शहर को अपनी सुसराल बनाना चाहता था वहां की जेल में बंद है. हम प्रार्थना करते हैं कि जेल ब्राह्मण न हो क्योंकि निरुपमा के घर वालों से उसकी जान को खतरा है.

निरुपमा की हत्या (पुलिस इसे आत्महत्या बताती है) के बाद न तो निरुपमा के घर वालों ने पुलिस को बुलाया और न कोडरमा की पुलिस खुद से चलकर गई. ये प्रियभांशु रंजन की राज्य पुलिस प्रमुख से लेकर एसपी साहब तक को लगातार फोन कॉल थे जिसके बाद पुलिस निरुपमा के घर पहुंची. पुलिस को परिवार ने बताया कि करंट लगने से मौत हो गई है. बाद में फंदा लगाकर खुदकुशी की बात बताई गई. प्रियभांशु और निरुपमा के मेरे जैसे मित्रों ने फैक्स दर फैक्स भेजकर प्रशासन से पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन करने की मांग की. बोर्ड ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा कि गले पर फंदे का जो निशान है वो गला दबाने से बना प्रतीत होता है. उस समय हमने निरुपमा की कुछ दुखद तस्वीरें जारी की थीं जिसमें उसके गले पर फंदे का निशान दिखता है, उसके सिर पर चोट के निशान दिखते हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि निरुपमा प्रियभांशु के बच्चे की मां बनने वाली थी जिसकी जानकारी न तो निरुपमा को थी और न प्रियभांशु को.

पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद हत्या का मामला दर्ज किया और निरुपमा की मां को गिरफ्तार कर लिया. निरुपमा के पिता और भाई से भी पूछताछ की गई. पुलिस की टीम दिल्ली पहुंची और प्रियभांशु समेत निरुपमा से जुड़े हर संभावित साक्ष्य से पूछताछ की गई. बिजनेस स्टैंडर्ड के दफ्तर में छानबीन की गई. निरुपमा के दोस्तों से जानकारी जुटाकर पुलिस टीम लौटी. प्रियभांशु का मोबाइल जब्त कर लिया गया क्योंकि पुलिस को प्रियभांशु और निरुपमा के बीच आए-गए एसएमएस से कुछ सुराग मिलने का भरोसा था. पुलिस ने आए-गए एसएमएस की जो संख्या बताई वो प्रियभांशु के मोबाइल पर मौजूद मैसेज की संख्या से मेल नहीं खा रहीं. प्रियभांशु के मुताबिक जो मैसेज आए या गए, वो सारे मैसेज उसने पुलिस को दिखाए. मैसेज के आने-जाने का एक केंद्र प्रियभांशु था जो मोबाइल सेट पुलिस के कब्जे में है लेकिन निरुपमा के मोबाइल का पता लगाने में पुलिस की नाकामयाबी को क्या माना जाए.

पुलिस की दिलचस्पी नहीं है कि वो मोबाइल सामने आए क्योंकि उसकी ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग से निकली झूठी कहानियां इससे मर जाएंगी. निरुपमा के परिवार को खुद मोबाइल पुलिस के हवाले कर देना चाहिए जिससे ये स्पष्ट हो जाता कि दोनों के बीच किस तरह के मैसेज आए गए थे. प्रियभांशु के मोबाइल में दर्ज मैसेज से तो यही पता चलता है कि दोनों आखिरी मैसेज तक एक-दूसरे को लेकर प्रतिबद्ध थे. निरुपमा के भाई-पापा इतने अहम सबूत को छुपा क्यों रहे हैं जिससे प्रियभांशु के तथाकथित झूठ की पोल खुल सकती है. पुलिस को यह समझाने की जरूरत नहीं है कि ये निरुपमा का मोबाइल ही है जो बता सकता है कि उसने जो मैसेज भेजे या उसे जो मैसेज मिले, वो प्रियभांशु को मोबाइल में दिख रहे मैसेज से अलग भी हैं क्या. क्या कोई ऐसा मैसेज है जो प्रियभांशु के पास नहीं पहुंचा या पहुंचा तो प्रियभांशु ने उसे छुपा लिया.

मोबाइल फोनों की बरामदगी और पड़ताल के अलावा कायदे से पुलिस को दोनों नंबरों के कॉल/मैसेज डिटेल्स उनके सर्विस प्रोवाइडरों से लेने चाहिए थे. सर्विस प्रोवाइडर के पास हरेक मोबाइल नंबर की पूरी कुंडली होती है जो बताती है कि उस नंबर पर कितने और किसके फोन या मैसेज आए-गए. कितने कॉल और मैसेज कामयाब हुए और कितने पहुंचने में नाकाम रहे. जो मैसेज आए या गए उसमें क्या लिखा गया था. पुलिस निरुपमा और प्रियभांशु दोनों के नंबरों के सेन्ट, फेल्ड, डिलीवर्ड, सक्सेसफुली सेन्ट बट अनडिलीवर्ड मैसेज का पूरा डिटेल और टेक्स्ट सामने रखती तो आखिरी समय में दोनों के रिश्तों की गहराई का पता चलता.  पुलिस के लिए ये बहुत आसान काम है लेकिन नीयत से ही तो जांच की दिशा तय होती है.

कई तथ्य हैं जो ट्रायल के दौरान कोर्ट में रखे जाएंगे और कोर्ट उसका अन्वेषण करने के बाद ही फैसला सुनाएगा कि पुलिस का रवैया इस मामले में सच सामने लाना का रहा है या सच छुपाने का और सच सामने लाने की कोशिश कर रहे प्रेमी को फंसाने का. निरुपमा की हत्या को सामने लाने का दुस्साहस करने के प्रतिशोध में प्रियभांशु पर पाठक परिवार ने भी कोर्ट केस किया. आरोप लगाया गया कि शादी का झांसा देकर प्रियभांशु ने निरुपमा के साथ बलात्कार किया. मुकदमा दर्ज करने वाले ये भूल गए कि निरुपमा के पिताजी ने इस शादी के खिलाफ धर्म की दुहाई देते हुए चिट्ठी लिखी थी. दोनों ने शादी की तारीख तय कर ली थी. मंदिर में शादी का इंतजाम कर लिया गया था. न्योते गए कुछ लोग दिल्ली पहुंच चुके थे. निरुपमा ने परिवार को मनाने की आखिरी कोशिश के लिए शादी को अंतिम समय में टाल दिया. निरुपमा को मां की बीमारी की आड़ में बुलाया गया और फिर वो कभी नहीं लौट पाई. बीमार मां को देखने गई निरुपमा को कोडरमा में कुछ अनहोनी की आशंका जरूर रही होगी तभी उसने जाने से पहले वापसी का टिकट ले रखा था. साधारण परिस्थिति में बीमार मां या बाप को देखने गए बेटे-बेटी तो घर पहुंचने के बाद मरीज की हालत में सुधार को देखने के बाद ही टिकट कटाने की सोचते हैं. पर उसे नहीं मालूम था कि ये उसका आखिरी सफर था. उसने कहा था कि शायद वो अपने परिवार को समझा पाने में कामयाब हो जाए और उसकी प्रेम कहानी का सुखद अंत हो लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.

निरुपमा के न्याय की लड़ाई अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे प्रियभांशु ने अग्रिम जमानत अर्जियां खारिज होने के बाद कोडरमा में आत्मसमर्पण कर दिया है और फिलहाल न्यायिक हिरासत में सलाखों के पीछे है. निरुपमा को न्याय दिलाने की ये लड़ाई अदालती रास्तों से आगे बढ़ेगी. ट्रायल कोर्ट में पुलिस की नापाक करतूतें सामने आ ही जाएंगी क्योंकि कोर्ट पुलिस थाने की केस डायरी नहीं है. पुलिस कहती है कि निरुपमा ने खुदकुशी की और खुदकुशी के लिए पिता धर्मेन्द्र पाठक, भाई समरेन्द्र पाठक, मां सुधा पाठक के साथ-साथ प्रेमी प्रियभांशु बराबर का जिम्मेदार है.

28 अप्रैल, 2010 को जब प्रियभांशु और निरुपमा की बात हुई तो वो वह दिन था जब निरुपमा को दिल्ली लौटने के लिए ट्रेन पकड़नी थी. मोबाइल पर रोती-बिलखती निरुपमा ने प्रियभांशु से कहा कि उसे घर वाले आने नहीं दे रहे हैं. उसकी जानकारी के बगैर शायद उसके दफ्तर बिजनेस स्टैंडर्ड में इस्तीफा भेज दिया गया है. उस पर मां और भाई के कुछ दोस्त निगरानी रख रहे हैं. प्रियभांशु ने उससे कहा कि वो पुलिस की मदद लेता है तो ऐसा करने से निरुपमा ने उसे मना कर दिया. प्रियभांशु ने उससे घर से किसी तरह निकलकर ट्रेन पकड़ने या रांची आ जाने के लिए भी कहा. ये भी कहा कि वो उसे लेने रांची आ जाता है या फ्लाइट में टिकट बुक करा देता है. लेकिन उसने ऐसा कुछ भी करने की इजाजत नहीं दी.

29 अप्रैल, 2010 को निरुपमा की हत्या की खबर को उसके परिवार ने छुपाने की पूरी कोशिश की. मौत के घंटों बाद भी न उन्होंने पड़ोसियों को और न पुलिस को इसकी भनक लगने दी. पुलिस को प्रियभांशु ने फोन करके उसके घर जाने का आग्रह किया जबकि नीरू के परिवार वाले चुपचाप उसके दाह संस्कार की तैयारियों में जुटे थे. झूठी शान के लिए हत्या का मामला था यह.

निरुपमा के लिए न्याय अभियान से जुड़े लोगों को उम्मीद थी कि सच सामने आएगा और हत्यारे पकड़े जाएंगे. उसके भाई के वो दोस्त पकड़े जाएंगे जो उस पर निगरानी रख रहे थे. इस बात की पूरी संभावना है कि इन लोगों ने ही हत्या करके शव को खुदकुशी की तरह प्लांट करने की कोशिश की हो. पर पुलिस तो ठहरी पुलिस. पुलिस के एक अधिकारी का बयान अभी भी मेरे कानों में गूंजता है कि अगर मेरी बेटी किसी और जात वाले से प्रेम करती तो उसका भी यही हश्र करता. ऐसी पुलिस से न्यायपूर्ण जांच की उम्मीद बेमानी है. पुलिस अनुसंधान में तीन डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा शव को देखकर बनाए गए पोस्टमार्टम रिपोर्ट की बजाय एम्स के विशेषज्ञों की एक ऐसी रिपोर्ट को आधार बनाया गया जो बिना घटनास्थल का मुआयना किए तैयार की गई. वैसे एम्स की ये रिपोर्ट भी आत्महत्या की संभावना भर जताती है, पुष्टि नहीं करती. आज भी निरुपमा का बंद कमरा इन विशेषज्ञों के आने का इंतजार कर रहा है.

निरुपमा ने अगर खुद फांसी लगाई थी और वो भी पहली मंजिल के कमरे में तो फिर घर में उस वक्त अकेली मौजूद मां सुधा पाठक ने कैसे उसे फंदे से उतार कर सीढ़ियों के रास्ते ग्राउंड फ्लोर पर लाया. वो भी तब जब उन्होंने निरुपमा को यही कहकर बुलाया था कि बाथरूम में गिरने से कमर में गहरी चोट आई है. पुलिस को सूचना देने की बजाय शव को धोया गया और घटनास्थल की सफाई की गई. एक सरकारी बैंक के मैनेजर धर्मेंद्र पाठक ने बेटी की हत्या के बाद बयान दिया था कि अरवा और उसना चावल एक नहीं हो सकते.

पुलिस जिस मोटिव के साथ काम कर रही है उससे जांच पूरी तरह पटरी से उतर गई है. उसका एक ही मकसद दिखता है, लीपापोती करना और साथ में उस लड़के को सजा दिलाना जिसने ऊंची जाति में प्यार करने का गुनाह किया. न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है. अब तो ट्रायल से ही तय होगा कि तथ्यों और सबूतों को लेकर अभियोजन का नजरिया न्यायोचित है या निरुपमा को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे लोगों का.

(लेखक निरुपमा के लिए न्याय अभियानसे जुड़े हुए हैं)

साभार- प्रतिरोध

Friday, April 22, 2011

Remembrance meeting for Nirupama Pathak on 29th April at IIMC Campus

A Remembrance meeting is being held on the occasion of 1st Death Anniversary of Nirupama Pathak on 29th April, 2011 at 6.00 P.M at IIMC Campus. Join us and pray for peace to her soul.


Justice for Nirupama Campaign

Wednesday, September 1, 2010

Convention against dishonour killings at Press Club on 12th September, 2.30 PM

Justice for Nirupama Campaign

New Delhi, September 1st.

Justice for Nirupama Campaign, the Press Club of India and the IIMC Alumni Association are organizing a convention against dishonour killings on 12th September, Sunday.

Details of the convention:

Topic: Against Dishonour Killing: For a better World
Date: September 12, Sunday
Time: 2.30 PM
Venue: Press Club of India, Raisina Road, New Delhi.

Confirmed Speakers as of now

Dr. K Keshav Rao, MP
Mr. Neeraj Shekhar, MP
Mr. Prashant Bhushan
Mrs. Kirti Singh
Prof. Anand Kumar
Prof. SS Jodhka
Mrs. Ranjana Kumari
Mrs. Sudha Sunder Raman
Mrs. Nilam Katara
Mr. Ram Bahadur Rai
Mrs. Neerja Chowdhury
Mrs. TK Rajalakshmi
Mrs. Bhasha Singh
We request you to join & support us in this initiative.


Thanks and regards
Justice for Nirupama Campaign
Press Club of India
IIMC Alumni Association

Wednesday, August 11, 2010

निरुपमा हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग

प्रेस विज्ञप्ति

नई दिल्ली, 11 अगस्त.

निरुपमा पाठक हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग को लेकर निरुपमा को न्याय अभियान का एक प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय माकन से मिला. माकन ने प्रतिनिधिमंडल को समुचित कार्रवाई का भरोसा दिया है. प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व प्रेस क्लब के महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने किया.

प्रतिनिधिमंडल ने निरुपमा हत्याकांड में निर्धारित समय सीमा के भीतर आरोपपत्र दाखिल कर पाने में विफल रही कोडरमा पुलिस की कार्यप्रणाली पर आक्रोश जताया और निष्पक्ष जांच के लिए इसे सीबीआई को सौंपने की मांग की.

निरुपमा को न्याय अभियान पिछले दो महीने से धैर्यपूर्वक पुलिस जांच और उसके नतीजे का इंतजार कर रहा है. लेकिन लगता है कि पुलिस निरुपमा पाठक की मौत को खुदकुशी साबित करने पर तुली है और उसकी जांच इसी सोच से निर्देशित हो रही है.

कोडरमा पुलिस की दिग्भ्रमित और धीमी जांच के खिलाफ निरुपमा को न्याय अभियान अगले सप्ताह तक राजनेताओं से मिलकर इस मसले को उठाएगा. निरुपमा को इंसाफ दिलाने की खातिर आगे के संघर्ष का खाका तैयार करने के लिए 22 अगस्त को निरुपमा को न्याय अभियान की एक बैठक होगी.

निरुपमा को न्याय अभियान का मानना है कि जाति से बाहर शादी की चाहत के कारण निरुपमा पाठक की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई. हत्या के बाद घटना को छुपाने की कोशिश की गई. जब बात सामने आ गई तो स्थानीय पुलिस की मदद से दोषियों को बचाने की साजिश रची जा रही है.

Tuesday, June 1, 2010

निरुपमा की मां के किस सच पर यकीन करें ?

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- अंतिम कड़ी


निरुपमा के पिताजी धर्मेंद्र पाठक ने 30 अप्रैल को पुलिस को दी लिखित सूचना में कहा, ‘...खोजबीन के क्रम में निरुपमा के बेड के नीचे से एक सुसाईडल चिट्ठी भी उसके लिखावट में मिला. जिसमें उसने मृत्यु पर किसी पर दोषारोपण नहीं लगाई है. और न ही हत्या का कारण बताई है. हमारा दावा है कि निरुपमा कुमारी किसी अंदरूनी कारण से, जो हम सभी परिवार नहीं जानते हैं, के कारण फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है’.

निरुपमा की मां 7 अप्रैल को सीजेएम कोर्ट के जरिए थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में लिखती हैं, ‘...दिनांक 29/4/2010 को मृतका निरुपमा पाठक द्वारा लगातार रोने की क्रिया-कलाप को देखकर मृतका की मां ने जब अपनी बच्ची से पूछा तो वह अपनी माता को मुद्दालय द्वारा किए गए वादे और धोखाधड़ी के बारे में बताया.’

निरुपमा के पिताजी ने पुलिस को दिए बयान में ही एक बार लिखा है “... न ही हत्या का कारण बताई है...” क्या एक राष्ट्रीयकृत बैंक में काम कर रहे पढ़े-लिखे पाठक जी हत्या और आत्महत्या का अंतर नहीं समझते या जाने-अनजाने में वो वह सच लिख बैठे जिसे छुपाने की जी-तोड़ कोशिश में उन्होंने पूरे परिवार को झोंक रखा है.

धर्मेंद्र पाठक 30 अप्रैल को लिखकर देते हैं कि उनके और उनके परिवार को नहीं मालूम है कि निरूपमा ने ऐसा क्यों किया. मतलब परिवार को 30 अप्रैल तक यह पता नहीं था कि निरुपमा ने खुदकुशी क्यों की. लेकिन अचानक जब हत्या के आरोप में मां जेल चली जाती हैं तो 7 मई को कोर्ट के आदेश पर दर्ज प्राथमिकी में निरुपमा की मां दावा करती हैं कि 29 अप्रैल को ही निरुपमा ने उनसे रोते हुए बताया था कि उसके साथ प्रियभांशु ने धोखाधड़ी की है.

हम किसे सच मानें, पिता को जो पत्नी के बताने के आधार पर पुलिस में लिखित बयान देते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को खुदकुशी का कारण नहीं मालूम है या मां को जो एक हफ्ते बाद प्रियभांशु पर कानूनी दबाव बनाने के मकसद से दायर नालिसी में दावा करती हैं कि उन्हें 29 अप्रैल को ही प्रियभांशु की धोखाधड़ी के बारे में पता चल गया था.

हम बार-बार कहते रहे हैं और फिर दोहराते हैं कि पाठक परिवार 29 अप्रैल से लगातार झूठ बोल रहा है. झूठ बोलने का नुकसान है कि आपको उसे हमेशा याद रखना पड़ता है. पहले परिवार ने कहा कि निरुपमा की मौत करंट लगने से हुई है. फिर कहा कि पंखा से लटककर उसने खुदकुशी की है. फिर कहा गया कि निरुपमा की मां ने पड़ोसियों की मदद से शव को नीचे उतारा. उसके बाद कहा गया कि निरुपमा की मां ने अकेले ही शव को उतार लिया.

इस परिवार ने इतने झूठ बोले हैं कि उसकी गिनती नहीं है. झूठ बोलने के कारण पाठक जी का परिवार खुद ही नंगा हो रहा है. हम मानते हैं कि ये ऑनर किलिंग का मामला है और पुलिस ने निरुपमा के घर वालों को खुला छोड़कर उन्हें सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और उसे नष्ट करने की पूरी छूट दी. पाठक परिवार ने पुलिस से मिली इस छूट का पूरा फायदा भी उठाया.

सुसाइड नोट का सच?

सुसाइड नोट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया है लेकिन अंत में चार लाइन हिन्दी में भी लिखा गया है जिसमें निरुपमा ने अपना अंतिम संस्कार गया में करने की गुजारिश की है. सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में लिखी गई बातें और हिन्दी में लिखी गई गुजारिश उसकी लिखावट से मेल खाती हैं, ये प्रियभांशु और उसके दोस्तों ने पुलिस को बताया है. लेकिन सुसाइड नोट में अंग्रेजी के कुछ शब्दों को तोड़ दिया गया है जो एक शब्द हैं और निरुपमा ऐसी गलतियां नहीं करती थी. ये संदेह पैदा करता है कि उससे जबरन यह नोट लिखवाया गया होगा.

इस सुसाइड नोट को निरुपमा ने लिखा या नहीं लिखा, स्वेच्छा से लिखा या इसे उससे जबर्दस्ती लिखवाया गया, ये सिर्फ निरुपमा ही जानती होगी या उससे जबरिया लिखवाने वाले. पुलिस और फॉरेंसिक टीम की जांच से भी इसमें से कुछ बात सामने आ सकती है.

लेकिन निरुपमा को न्याय अभियान इस बात को पचा नहीं पा रहा कि उसने खुदकुशी की होगी. 28/29 अप्रैल तक की उसकी बातचीत या एसएमएस से कहीं से ऐसा नहीं लगता कि उसने खुदकुशी की कोई सोच बनाई थी. इस सुसाइड नोट पर तारीख के साथ भी छेड़छाड़ की बात सामने आई है.

एक और बात जिसको लेकर संदेह पैदा होता है. निरुपमा के सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में दस्तखत के नीचे हिन्दी में भी एक दस्तखत किया गया है. सवाल यह है कि निरुपमा ने जब अंग्रेजी में दस्तखत कर दिया था तो उसे दोबारा हिन्दी में दस्तखत करने की जरूरत क्या थी. क्या हम-आप किसी भी पेपर पर अंग्रेजी और हिन्दी में एक साथ दस्तखत करते हैं या सिर्फ एक ही दस्तखत करते हैं.

आप भी देखिए निरुपमा के सुसाइड नोट पर हिन्दी में उसके दस्तखत को और बगल में हिन्दी में लिखी गई उन चार पंक्तियों को. क्या दोनों की लिखावट एक लगती है, किसी अक्षर से, शब्द और अक्षर लिखने के तौर-तरीके से, अक्षरों की किसी गोलाई से. हमारी आंखों को तो ऐसा लगता है कि सुसाइड नोट पर हिन्दी का हस्ताक्षर निरुपमा का नहीं है. बल्कि अगर नीचे लगाई गई उसके पिता धर्मेंद्र पाठक की चिट्ठी, उसके पिता धर्मेंद्र पाठक का हस्ताक्षर देखें तो आपको मसहूस होगा कि निरुपमा के हिन्दी दस्तखत का ज्यादातर हिस्सा उनके पिता की लिखावट और उनके दस्तखत से मेल खाता है. आप खुद देखिए और तय कीजिए कि निरुपमा का हिन्दी हस्ताक्षर उसकी लिखावट से मेल खाता है या उसके पिताजी की लिखावट से.

अगर खुदकुशी तो जिम्मेदार कौन ?

इस संदर्भ में चलते-चलते एक और बात. हम कतई नहीं मानते कि निरुपमा ने खुदकुशी की है लेकिन एक पल के लिए मान भी लें कि यह “सुसाइड नोट” सही है जैसा पाठक परिवार दावा कर रहा है तो इसके मुताबिक निरुपमा ने अपनी कथित “सुसाइड” के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया है. फिर किस आधार पर पाठक परिवार निरुपमा की कथित “सुसाइड” के लिए प्रियभांशु को जिम्मेदार ठहरा रहा है? लेकिन पाठक परिवार क्यों परवाह करे जो निरुपमा के बाद अब सच की हत्या करने पर तुला हुआ है.

सबसे बड़ी बात, अगर ये खुदकुशी थी तो खुदकुशी के लिए निरुपमा को मजबूर तो उसके परिवार ने किया जो उसे पसंद का जीवनसाथी नहीं चुनने दे रहा था. टिकट कटे होने के बावजूद 28 अप्रैल को निरुपमा को दिल्ली आने से रोक लिया गया, निरुपमा के अखबार के दफ्तर में फोन करके इस्तीफे की बात की गई. बातचीत पर ऐसी पाबंदी लगाई गई कि उसे बाथरूम में जाकर एसएमएस करना पड़ा. एक तरह से निरुपमा की जिंदगी पर ‘सनातनी सरकार’ ने कर्फ्यू लगा रखा था. इसी आशंका से निरुपमा 14 अप्रैल को ही मां की बीमारी की खबर मिलने के बावजूद तुरंत कोडरमा आने का फैसला नहीं कर पाई और 17 अप्रैल को टिकट कटाकर 19 अप्रैल को चलकर 20 अप्रैल को कोडरमा पहुंची.

कोई बाप अपनी पसंद से बाहर शादी की चाहत के एवज में बेटी को जितनी मानसिक यातना दे सकता है, धर्मेंद्र पाठक ने उसमें कोई कसर नहीं रखी. पाठक परिवार को तो खुदकुशी के उनके ही दावे के हिसाब से भी खुदकुशी के उकसावे की सजा के लिए तैयार रहना चाहिए. इस मामले में मुख्य आरोपी ‘सनातनी चिट्ठी’ के लेखक निरुपमा के पिता धर्मेंद्र पाठक ही होंगे और घटना के दिन कोडरमा में न होने की उनकी दलील भी इसमें काम नहीं आएगी.

निरुपमा पाठक की हत्या से जुड़े हर उस तथ्य को हमने पिछले छह दिन में सामने रखा है जो हमारे पास उपलब्ध हैं. पुलिस जांच में अगर इससे अलग कुछ ऐसा मिला हो जो अब तक मीडिया में न आया हो तो हमें उससे अनजान माना जाए. निरुपमा की मौत के सच और झूठ की तलाश की यह लिखित श्रृंखला फिलहाल खत्म हो रही है. निरुपमा को न्याय अभियान यकीन दिलाता है कि निरुपमा के हत्यारों को सजा दिलाए बगैर हम चैन से नहीं बैठेंगे. हमें भरोसा है कि निरुपमा को न्याय दिलाने के संघर्ष में जब और जिस रूप में हमें आपकी मदद की जरूरत पड़ी, आप हमारे साथ होंगे.

साभार- मोहल्ला