Tuesday, June 1, 2010

निरुपमा की मां के किस सच पर यकीन करें ?

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- अंतिम कड़ी


निरुपमा के पिताजी धर्मेंद्र पाठक ने 30 अप्रैल को पुलिस को दी लिखित सूचना में कहा, ‘...खोजबीन के क्रम में निरुपमा के बेड के नीचे से एक सुसाईडल चिट्ठी भी उसके लिखावट में मिला. जिसमें उसने मृत्यु पर किसी पर दोषारोपण नहीं लगाई है. और न ही हत्या का कारण बताई है. हमारा दावा है कि निरुपमा कुमारी किसी अंदरूनी कारण से, जो हम सभी परिवार नहीं जानते हैं, के कारण फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है’.

निरुपमा की मां 7 अप्रैल को सीजेएम कोर्ट के जरिए थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में लिखती हैं, ‘...दिनांक 29/4/2010 को मृतका निरुपमा पाठक द्वारा लगातार रोने की क्रिया-कलाप को देखकर मृतका की मां ने जब अपनी बच्ची से पूछा तो वह अपनी माता को मुद्दालय द्वारा किए गए वादे और धोखाधड़ी के बारे में बताया.’

निरुपमा के पिताजी ने पुलिस को दिए बयान में ही एक बार लिखा है “... न ही हत्या का कारण बताई है...” क्या एक राष्ट्रीयकृत बैंक में काम कर रहे पढ़े-लिखे पाठक जी हत्या और आत्महत्या का अंतर नहीं समझते या जाने-अनजाने में वो वह सच लिख बैठे जिसे छुपाने की जी-तोड़ कोशिश में उन्होंने पूरे परिवार को झोंक रखा है.

धर्मेंद्र पाठक 30 अप्रैल को लिखकर देते हैं कि उनके और उनके परिवार को नहीं मालूम है कि निरूपमा ने ऐसा क्यों किया. मतलब परिवार को 30 अप्रैल तक यह पता नहीं था कि निरुपमा ने खुदकुशी क्यों की. लेकिन अचानक जब हत्या के आरोप में मां जेल चली जाती हैं तो 7 मई को कोर्ट के आदेश पर दर्ज प्राथमिकी में निरुपमा की मां दावा करती हैं कि 29 अप्रैल को ही निरुपमा ने उनसे रोते हुए बताया था कि उसके साथ प्रियभांशु ने धोखाधड़ी की है.

हम किसे सच मानें, पिता को जो पत्नी के बताने के आधार पर पुलिस में लिखित बयान देते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को खुदकुशी का कारण नहीं मालूम है या मां को जो एक हफ्ते बाद प्रियभांशु पर कानूनी दबाव बनाने के मकसद से दायर नालिसी में दावा करती हैं कि उन्हें 29 अप्रैल को ही प्रियभांशु की धोखाधड़ी के बारे में पता चल गया था.

हम बार-बार कहते रहे हैं और फिर दोहराते हैं कि पाठक परिवार 29 अप्रैल से लगातार झूठ बोल रहा है. झूठ बोलने का नुकसान है कि आपको उसे हमेशा याद रखना पड़ता है. पहले परिवार ने कहा कि निरुपमा की मौत करंट लगने से हुई है. फिर कहा कि पंखा से लटककर उसने खुदकुशी की है. फिर कहा गया कि निरुपमा की मां ने पड़ोसियों की मदद से शव को नीचे उतारा. उसके बाद कहा गया कि निरुपमा की मां ने अकेले ही शव को उतार लिया.

इस परिवार ने इतने झूठ बोले हैं कि उसकी गिनती नहीं है. झूठ बोलने के कारण पाठक जी का परिवार खुद ही नंगा हो रहा है. हम मानते हैं कि ये ऑनर किलिंग का मामला है और पुलिस ने निरुपमा के घर वालों को खुला छोड़कर उन्हें सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और उसे नष्ट करने की पूरी छूट दी. पाठक परिवार ने पुलिस से मिली इस छूट का पूरा फायदा भी उठाया.

सुसाइड नोट का सच?

सुसाइड नोट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया है लेकिन अंत में चार लाइन हिन्दी में भी लिखा गया है जिसमें निरुपमा ने अपना अंतिम संस्कार गया में करने की गुजारिश की है. सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में लिखी गई बातें और हिन्दी में लिखी गई गुजारिश उसकी लिखावट से मेल खाती हैं, ये प्रियभांशु और उसके दोस्तों ने पुलिस को बताया है. लेकिन सुसाइड नोट में अंग्रेजी के कुछ शब्दों को तोड़ दिया गया है जो एक शब्द हैं और निरुपमा ऐसी गलतियां नहीं करती थी. ये संदेह पैदा करता है कि उससे जबरन यह नोट लिखवाया गया होगा.

इस सुसाइड नोट को निरुपमा ने लिखा या नहीं लिखा, स्वेच्छा से लिखा या इसे उससे जबर्दस्ती लिखवाया गया, ये सिर्फ निरुपमा ही जानती होगी या उससे जबरिया लिखवाने वाले. पुलिस और फॉरेंसिक टीम की जांच से भी इसमें से कुछ बात सामने आ सकती है.

लेकिन निरुपमा को न्याय अभियान इस बात को पचा नहीं पा रहा कि उसने खुदकुशी की होगी. 28/29 अप्रैल तक की उसकी बातचीत या एसएमएस से कहीं से ऐसा नहीं लगता कि उसने खुदकुशी की कोई सोच बनाई थी. इस सुसाइड नोट पर तारीख के साथ भी छेड़छाड़ की बात सामने आई है.

एक और बात जिसको लेकर संदेह पैदा होता है. निरुपमा के सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में दस्तखत के नीचे हिन्दी में भी एक दस्तखत किया गया है. सवाल यह है कि निरुपमा ने जब अंग्रेजी में दस्तखत कर दिया था तो उसे दोबारा हिन्दी में दस्तखत करने की जरूरत क्या थी. क्या हम-आप किसी भी पेपर पर अंग्रेजी और हिन्दी में एक साथ दस्तखत करते हैं या सिर्फ एक ही दस्तखत करते हैं.

आप भी देखिए निरुपमा के सुसाइड नोट पर हिन्दी में उसके दस्तखत को और बगल में हिन्दी में लिखी गई उन चार पंक्तियों को. क्या दोनों की लिखावट एक लगती है, किसी अक्षर से, शब्द और अक्षर लिखने के तौर-तरीके से, अक्षरों की किसी गोलाई से. हमारी आंखों को तो ऐसा लगता है कि सुसाइड नोट पर हिन्दी का हस्ताक्षर निरुपमा का नहीं है. बल्कि अगर नीचे लगाई गई उसके पिता धर्मेंद्र पाठक की चिट्ठी, उसके पिता धर्मेंद्र पाठक का हस्ताक्षर देखें तो आपको मसहूस होगा कि निरुपमा के हिन्दी दस्तखत का ज्यादातर हिस्सा उनके पिता की लिखावट और उनके दस्तखत से मेल खाता है. आप खुद देखिए और तय कीजिए कि निरुपमा का हिन्दी हस्ताक्षर उसकी लिखावट से मेल खाता है या उसके पिताजी की लिखावट से.

अगर खुदकुशी तो जिम्मेदार कौन ?

इस संदर्भ में चलते-चलते एक और बात. हम कतई नहीं मानते कि निरुपमा ने खुदकुशी की है लेकिन एक पल के लिए मान भी लें कि यह “सुसाइड नोट” सही है जैसा पाठक परिवार दावा कर रहा है तो इसके मुताबिक निरुपमा ने अपनी कथित “सुसाइड” के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया है. फिर किस आधार पर पाठक परिवार निरुपमा की कथित “सुसाइड” के लिए प्रियभांशु को जिम्मेदार ठहरा रहा है? लेकिन पाठक परिवार क्यों परवाह करे जो निरुपमा के बाद अब सच की हत्या करने पर तुला हुआ है.

सबसे बड़ी बात, अगर ये खुदकुशी थी तो खुदकुशी के लिए निरुपमा को मजबूर तो उसके परिवार ने किया जो उसे पसंद का जीवनसाथी नहीं चुनने दे रहा था. टिकट कटे होने के बावजूद 28 अप्रैल को निरुपमा को दिल्ली आने से रोक लिया गया, निरुपमा के अखबार के दफ्तर में फोन करके इस्तीफे की बात की गई. बातचीत पर ऐसी पाबंदी लगाई गई कि उसे बाथरूम में जाकर एसएमएस करना पड़ा. एक तरह से निरुपमा की जिंदगी पर ‘सनातनी सरकार’ ने कर्फ्यू लगा रखा था. इसी आशंका से निरुपमा 14 अप्रैल को ही मां की बीमारी की खबर मिलने के बावजूद तुरंत कोडरमा आने का फैसला नहीं कर पाई और 17 अप्रैल को टिकट कटाकर 19 अप्रैल को चलकर 20 अप्रैल को कोडरमा पहुंची.

कोई बाप अपनी पसंद से बाहर शादी की चाहत के एवज में बेटी को जितनी मानसिक यातना दे सकता है, धर्मेंद्र पाठक ने उसमें कोई कसर नहीं रखी. पाठक परिवार को तो खुदकुशी के उनके ही दावे के हिसाब से भी खुदकुशी के उकसावे की सजा के लिए तैयार रहना चाहिए. इस मामले में मुख्य आरोपी ‘सनातनी चिट्ठी’ के लेखक निरुपमा के पिता धर्मेंद्र पाठक ही होंगे और घटना के दिन कोडरमा में न होने की उनकी दलील भी इसमें काम नहीं आएगी.

निरुपमा पाठक की हत्या से जुड़े हर उस तथ्य को हमने पिछले छह दिन में सामने रखा है जो हमारे पास उपलब्ध हैं. पुलिस जांच में अगर इससे अलग कुछ ऐसा मिला हो जो अब तक मीडिया में न आया हो तो हमें उससे अनजान माना जाए. निरुपमा की मौत के सच और झूठ की तलाश की यह लिखित श्रृंखला फिलहाल खत्म हो रही है. निरुपमा को न्याय अभियान यकीन दिलाता है कि निरुपमा के हत्यारों को सजा दिलाए बगैर हम चैन से नहीं बैठेंगे. हमें भरोसा है कि निरुपमा को न्याय दिलाने के संघर्ष में जब और जिस रूप में हमें आपकी मदद की जरूरत पड़ी, आप हमारे साथ होंगे.

साभार- मोहल्ला

निरुपमा का सिमकार्ड क्यों छुपाया गया ?

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- पांचवीं कड़ी


निरुपमा 19 अप्रैल को दिल्ली से निकली और 20 अप्रैल को घर पहुंच गई. अपनी ट्रेन के कोडरमा स्टेशन पहुंचने से कुछ देर पहले उसने प्रियभांशु को फोन किया और बताया कि वो पहुंचने वाली है. इसके बाद दोनों के बीच कोई बातचीत 28 अप्रैल तक नहीं हुई. इस आठ दिन तक दोनों के बीच बातचीत का जरिया एसएमएस था. प्रियभांशु को निरुपमा ने जो एसएमएस भेजे, उससे भी ये साफ है कि उसे एसएमएस तक भेजने के लिए बाथरूम जाना पड़ता था.

28 अप्रैल को जब तकरीबन आठ दिनों के अंतराल पर दोनों की बात हुई तो वो वह दिन था जब निरुपमा को दिल्ली लौटने के लिए ट्रेन पकड़नी थी. मोबाइल पर हुई बातचीत में रोती-बिलखती निरुपमा ने प्रियभांशु से कहा कि उसे घर वाले आने नहीं दे रहे हैं, उसकी जानकारी के बगैर शायद उसके दफ्तर बिजनेस स्टैंडर्ड में उसका इस्तीफा भेज दिया गया है, उस पर मां और भाई के दोस्त निगरानी रख रहे हैं. प्रियभांशु ने उससे कहा कि वो पुलिस की मदद लेता है तो निरुपमा ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया. प्रियभांशु ने उससे घर से किसी तरह निकलकर ट्रेन पकड़ने या रांची आ जाने के लिए भी कहा. ये भी कहा कि वो उसे लेने रांची आ जाता है या फ्लाईट में टिकट बुक करा देता है जिससे वो सकुशल दिल्ली आ सके .

प्रियभांशु का कहना है और परिस्थितियों के अनुसार बिलकुल तार्किक भी लगता है कि आखिरी एसएमएस में ‘एक्सट्रीम स्टेप’ से निरुपमा का आशय यही था कि पुलिस को बिना मेरे कहे मत बोलना. 28 अप्रैल और घर पहुंचने के बाद से निरुपमा ने प्रियभांशु को जो एसएमएस किए उससे साफ है कि वो घर से फोन नहीं कर पा रही थी, उसे एक एसएमएस तक करने के लिए बाथरूम जाना पड़ता था.

यहां ये बताना जरूरी लग रहा है कि जब 14 अप्रैल को निरुपमा के भाई समरेंद्र पाठक ने फोन करके मां की रीढ़ की हड्ड़ी टूटने की जानकारी देते हुए उसे घर जाने को कहा तो निरुपमा ने समरेंद्र से कहा कि अगर मां की हालत इतनी गंभीर है तो वो खुद क्यों नहीं कोडरमा जा रहा. समरेंद्र ने कहा कि पहले निरुपमा जाए, वो बाद में पहुंचेगा. इसके बाद निरुपमा ने उसी दिन अपने दफ्तर के एक दोस्त के आईआरसीटीसी खाते से कोडरमा से 28 अप्रैल के लौटने का टिकट कटा लिया. लेकिन जाने का टिकट उसने तत्काल कोटे से 17 अप्रैल को लिया और तब 19 अप्रैल को रवाना हुई.

14 अप्रैल को मां की रीढ़ की हड्डी टूटने की सूचना मिलने के बावजूद उसने कोडरमा जाने का फैसला 16 अप्रैल को लिया और 17 अप्रैल को तत्काल कोटे से 19 अप्रैल का टिकट लिया. तत्काल कोटे से टिकट 15 अप्रैल की सुबह भी कटाया जा सकता था लेकिन दो दिन तक उसने यह तय करने में लगाया कि उसे जाना चाहिए या नहीं.

घर वालों की तरफ से प्रियभांशु से रिश्ते को लेकर इनकार, राहू की खराबी और विनाश की धमकी के साथ पिता की चिट्ठी के मद्देनजर निरुपमा की मनोदशा को भी समझने की जरूरत है कि उसे 14 अप्रैल को जब घर जाने का निर्देश भाई से फोन पर मिलता है तो वह सबसे पहले जाने का टिकट कटाने की बजाय उसी दिन अपनी वापसी का टिकट कटाती है. यानी उसने जाने का फैसला तब तक नहीं किया लेकिन यह तय कर लिया था कि अगर जाएगी तो 28 अप्रैल को तो लौट ही आएगी. इस मनोदशा को समझने की जरूरत है कि मां की बीमारी की खबर सुनकर भी एक बेटी घर जाने और न जाने की उलझन में क्यों थी, कौन सा खौफ इसके पीछे काम कर रहा था.

बिजनेस स्टैंडर्ड में जिस दोस्त के आईआरसीटीसी खाते से उसने 28 अप्रैल की वापसी के लिए टिकट कटाया था, उससे निरुपमा ने कहा था कि हो सकता है कि ये उसे घर बुलाने की साजिश हो और घर वाले फिर उसे आने न दें और वहीं किसी से शादी करवा दें. इस दोस्त से निरुपमा ने कहा था कि वो 30 अप्रैल का भी एक वापसी टिकट कटा लेती है ताकि अगर घर वाले 28 को नहीं आने दें तो वो दो दिन बाद निकल जाए. लेकिन फिर उसने कहा कि अगर घर वाले 28 को रोक सकते हैं तो 30 को भी रोक लेंगे इसलिए 30 का टिकट रहने दो.

इस दोस्त से निरुपमा ने प्रियभांशु से अपनी शादी की योजना को लेकर ये भी कहा था, ‘ये इतना आसान नहीं है, वे लोग बहुत गुस्सा करेंगे, वो उससे रिश्ता तोड़कर घर छोड़ने भी कह सकते हैं लेकिन कुछ साल बाद सब ठीक हो जाएगा. बाद में तो मान ही जाएंगे, कब तक नाराज रहेंगे.’

एक बार निरुपमा को उसके बड़े भाई समरेंद्र का एसएमएस आया जिसमें उसे एक अंग्रेजी अखबार में छपी एक खबर पढ़ने के लिए कहा गया और यह धमकी दी गई कि ये उसके साथ भी हो सकता है. खबर थी एक लड़की के भाई के हाथों लड़की के पति समेत पति के परिवार के कुछ सदस्यों की हत्या.

होनी-अनहोनी से बेखबर निरुपमा ने 14 अप्रैल को ही 28 अप्रैल का रिटर्न टिकट कटाने के बाद प्रियभांशु से कोडरमा जाने को लेकर मन में चल रही उलझन बताई और अंततः इस आधार पर जाने का फैसला लिया कि अगर भाई की बात में 10 फीसदी भी सच्चाई है तो एक अच्छी बेटी होने के नाते उसे जाना चाहिए. प्रियभांशु ने भी उसके इस फैसले में सहमति दी.

28 अप्रैल को प्रियभांशु ने निरुपमा को जो एसएमएस किए उसमें निरुपमा पाठक से घर से निकलकर रांची आने को कहा गया ताकि वो दिल्ली आ सके. प्रियभांशु ने खुद रांची आने तक की बात की.

एक एसएमएस में प्रियभांशु ने लिखा कि उसे मर जाने का मन कर रहा है. निरुपमा ने आखिरी एसएमएस में ...तुम अपने आप को कुछ मत करना... उसके मद्देनजर ही लिखा होगा. एक एसएमएस में प्रियभांशु ने निरुपमा को लिखा, ....मुझे भूल जाओ कहने से पहले एक बार भी नहीं सोचा आपने... ये सारी बातें 28 अप्रैल की हैं.

निरुपमा की मां ने सीजेएम कोर्ट के माध्यम से दर्ज कराई गई प्राथमिकी में साफ-साफ लिखा है कि ...प्रियभांशु ने निरुपमा से शादी से इनकार कर दिया, प्रियभांशु जब यह जान गया कि निरुपमा अपने मां के पास पहुंच गई है तो उसने निरुपमा से कहा कि अब अपने घर पहुंच गई हो तो वहीं अभिभावक से कहकर कोई लड़का खोजकर शादी कर लो... निरुपमा घर पहुंच गई थी 20 अप्रैल को और उनकी मां की प्राथमिकी के मुताबिक 29 अप्रैल की सुबह उन्होंने निरुपमा को लगातार रोता हुआ पाया. बीच की किस तारीख को क्या हुआ, ये उन्होंने नहीं बताया.

हम उन्हीं की शिकायत के वाक्य को ठीक से पढ़ें तो ऐसा लगता है कि निरुपमा की मां ये कह रही हैं कि जैसे ही निरुपमा के अपने घर पहुंच जाने की खबर प्रियभांशु को लगी तो उसने निरुपमा से कह दिया कि वहीं घर वालों से कहकर दूसरे लड़के से शादी कर लो, मैं शादी नहीं करने वाला. निरुपमा 20 अप्रैल को ही घर पहुंच गई थी. लेकिन 20 अप्रैल से 29 अप्रैल तक के किसी भी एसएमएस से ऐसा नहीं लगता कि प्रियभांशु ने शादी से इनकार कर दिया था या निरुपमा उसकी कथित “धोखाधड़ी” से नाराज थी.

29 अप्रैल की सुबह 5.39 बजे के बाद निरुपमा पाठक की तरफ से प्रियभांशु को कोई एसएमएस नहीं आया, कोई फोन नहीं आया. प्रियभांशु ने एक डिलीवर्ड और दूसरा नन डिलीवर्ड एसएमएस को छोड़कर कई बार फोन लगाया लेकिन निरुपमा का फोन पहुंच से बाहर बताता रहा. जब 29 अप्रैल को दोनों के बीच कोई बात ही नहीं हुई तो प्रियभांशु के कुछ कहने के कारण निरुपमा के रोने की बात गल्प कथा है.

28 तारीख की रात 8.52 बजे तक प्रियभांशु को जो एसएमएस मिला उससे कहीं नहीं लगता है कि निरुपमा प्रियभांशु की तरफ से शादी से इनकार कर देने से उससे नाराज थी. अलबत्ता, वो तो यह दिलासा दे रही थी कि “वो आने की कोशिश करेगी, प्रियभांशु अपना ख्याल रखे. अपने आप को कुछ न करे. कोई एक्सट्रीम स्टेप न उठाए.”

पुलिस ने अब तक निरुपमा के मोबाइल फोन का सिमकार्ड बरामद नहीं किया है जिससे प्रियभांशु से उसकी बातचीत हो रही थी, दोनों के बीच एसएमएस आ-जा रहा था. परिवार ने इस सिमकार्ड को गायब कर दिया. ऐसा क्यों किया गया, इसका जवाब पुलिस वाले पाठक परिवार से लेंगे. लेकिन अगर निरुपमा के मोबाइल फोन से सिम को अलग नहीं किया जाता और सिम को गायब नहीं किया जाता तो निरुपमा के मोबाइल फोन से आए और उसे मिले सारे एसएमएस पूरा सच सामने रख देते.

इससे हमें भी पता चल जाता कि प्रियभांशु ने उससे ऐसा क्या कह दिया था कि उसकी मां के मुताबिक “वो रोने लगी और उसे खुदकुशी करनी पड़ी.” ऐसा सामने आने पर हम प्रियभांशु के खिलाफ भी उतनी ही ताकत के साथ लड़ेंगे जिस जिद के साथ निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए परिवार के खिलाफ खड़े हैं. लेकिन अभी तक तो यही लगता है कि प्रियभांशु और निरुपमा अपने आखिरी एसएमएस तक अपने प्रेम, साथ रहने और शादी को लेकर आशान्वित थे, अपने प्यार को शादी के बंधन में बांधने के रास्ते तलाश रहे थे. इसलिए ऐसा कोई भी सबूत पाठक परिवार पुलिस के हाथ नहीं लगने देना चाहता था जो उसकी झूठी कहानी को नंगा कर दे. हमें गुस्सा तो पुलिस पर आ रहा है जो अब तक पाठक परिवार से सिमकार्ड नहीं ले पाई है.

निरुपमा की मां को वह तारीख पता ही नहीं है कि किस दिन प्रियभांशु ने निरुपमा से शादी से इनकार कर दिया. ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रियभांशु ने न तो शादी से इनकार किया था और न ही ये कहा कि वो अपने घरवालों से कहकर वहीं कोई लड़का देखकर शादी कर ले. ये निरुपमा के परिवार और उनके वकीलों की रची-बुनी ऐसी सी-ग्रेड की फिल्मी कहानी है जो प्रेम का अपमान करती है, उसका मजाक उड़ाती है.

निरुपमा पाठक शादी से इनकार करने के बाद प्रियभांशु रंजन को भावनात्मक और लगाव भरे एसएमएस करने की बजाय गाली दे रही होती, ये कह रही होती कि तुमने मुझे धोखा दिया है, तुमने मेरे भरोसे को तोड़ा है. ऐसा कुछ भी निरुपमा ने नहीं कहा, लेकिन उनकी वह मां कह रही हैं जिन्हें निरुपमा इतना चाहती थी और जिनके बारे में बहुत से लोगों को लगता है कि वे निरुपमा कि “हत्या” कैसे कर सकती हैं? लेकिन अफसोस, सुधा पाठक तो उस परिवार की महिला हैं जिसके मुखिया इस शादी के इतने खिलाफ थे कि उन्होंने अपनी बेटी को दो पन्ने की चिट्ठी लिखी और उसमें लिखा कि धर्म विरुद्ध कार्य तुम्हें पूरी तरह चौपट कर देगा.

इस पूरे प्रकरण में शादी के खिलाफ कोई दिखता है तो धर्मेंद्र पाठक दिखते हैं. पत्नी के रूप में निरुपमा की मां के पास और कोई चारा भी नहीं होगा कि वो पति की चाहत से अलग कुछ करें. एक धर्मांध पिता कितना पुरुषवादी मानसिकता वाला और कितना आदर्श पति होगा, ये समझा जा सकता है.

नीरू (उसके दोस्त उसे इसी नाम से बुलाते थे) आज इस दुनिया में नहीं है. मेरा उससे या प्रियभांशु से इस हादसे से पहले कोई सीधा परिचय भी नहीं था लेकिन इन बच्चों के दोस्त और जानने वाले कहते हैं कि प्रियभांशु को लोग नीरू की बात न टालने के कारण ‘जोरू का गुलाम’ कहने लगे थे. अपनी नीरू की इस ‘गुलामी’ के कारण उसने चाहते हुए भी न तो पुलिस की मदद ली और न एक बार तय हो गई तारीख पर शादी ही की.

अगर निरुपमा की बात मानना प्रियभांशु की गलती थी तो वह गलती उसने की. इसकी उसे बहुत बड़ी सजा मिल गई है. उसने नीरू को खो दिया है. लेकिन प्रेम में ऐसी गलती कौन नहीं करता है? आखिर प्रेम में सब कुछ विश्वास पर चलता है. निश्चय ही, निरुपमा और प्रियभांशु को यह विश्वास रहा होगा कि थोड़े-बहुत विरोध के बाद निरुपमा के घर वाले मान जाएंगे या अधिक से अधिक घर से निकाल देंगे लेकिन वे हत्या तक पहुंच जाएंगे, ऐसा उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा.

घर में रहने से सुरक्षा की भावना जगती है, ताकत मिलती है कि हम अपने घर में हैं. लेकिन मां की रीढ़ की हड्डी टूटने की खबर के बावजूद निरुपमा घर जाने से हिचकिचा रही थी. ये सिर्फ हम सबका नहीं बल्कि निरुपमा के परिवार का भी दुर्भाग्य है कि एक मेधावी और होनहार पत्रकार का अपने परिवार पर भरोसा गलत साबित हुआ और उसकी हिचकिचाहट सही साबित हुई.


साभार- मोहल्ला