Wednesday, September 1, 2010

Convention against dishonour killings at Press Club on 12th September, 2.30 PM

Justice for Nirupama Campaign

New Delhi, September 1st.

Justice for Nirupama Campaign, the Press Club of India and the IIMC Alumni Association are organizing a convention against dishonour killings on 12th September, Sunday.

Details of the convention:

Topic: Against Dishonour Killing: For a better World
Date: September 12, Sunday
Time: 2.30 PM
Venue: Press Club of India, Raisina Road, New Delhi.

Confirmed Speakers as of now

Dr. K Keshav Rao, MP
Mr. Neeraj Shekhar, MP
Mr. Prashant Bhushan
Mrs. Kirti Singh
Prof. Anand Kumar
Prof. SS Jodhka
Mrs. Ranjana Kumari
Mrs. Sudha Sunder Raman
Mrs. Nilam Katara
Mr. Ram Bahadur Rai
Mrs. Neerja Chowdhury
Mrs. TK Rajalakshmi
Mrs. Bhasha Singh
We request you to join & support us in this initiative.


Thanks and regards
Justice for Nirupama Campaign
Press Club of India
IIMC Alumni Association

Wednesday, August 11, 2010

निरुपमा हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग

प्रेस विज्ञप्ति

नई दिल्ली, 11 अगस्त.

निरुपमा पाठक हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग को लेकर निरुपमा को न्याय अभियान का एक प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय माकन से मिला. माकन ने प्रतिनिधिमंडल को समुचित कार्रवाई का भरोसा दिया है. प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व प्रेस क्लब के महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने किया.

प्रतिनिधिमंडल ने निरुपमा हत्याकांड में निर्धारित समय सीमा के भीतर आरोपपत्र दाखिल कर पाने में विफल रही कोडरमा पुलिस की कार्यप्रणाली पर आक्रोश जताया और निष्पक्ष जांच के लिए इसे सीबीआई को सौंपने की मांग की.

निरुपमा को न्याय अभियान पिछले दो महीने से धैर्यपूर्वक पुलिस जांच और उसके नतीजे का इंतजार कर रहा है. लेकिन लगता है कि पुलिस निरुपमा पाठक की मौत को खुदकुशी साबित करने पर तुली है और उसकी जांच इसी सोच से निर्देशित हो रही है.

कोडरमा पुलिस की दिग्भ्रमित और धीमी जांच के खिलाफ निरुपमा को न्याय अभियान अगले सप्ताह तक राजनेताओं से मिलकर इस मसले को उठाएगा. निरुपमा को इंसाफ दिलाने की खातिर आगे के संघर्ष का खाका तैयार करने के लिए 22 अगस्त को निरुपमा को न्याय अभियान की एक बैठक होगी.

निरुपमा को न्याय अभियान का मानना है कि जाति से बाहर शादी की चाहत के कारण निरुपमा पाठक की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई. हत्या के बाद घटना को छुपाने की कोशिश की गई. जब बात सामने आ गई तो स्थानीय पुलिस की मदद से दोषियों को बचाने की साजिश रची जा रही है.

Tuesday, June 1, 2010

निरुपमा की मां के किस सच पर यकीन करें ?

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- अंतिम कड़ी


निरुपमा के पिताजी धर्मेंद्र पाठक ने 30 अप्रैल को पुलिस को दी लिखित सूचना में कहा, ‘...खोजबीन के क्रम में निरुपमा के बेड के नीचे से एक सुसाईडल चिट्ठी भी उसके लिखावट में मिला. जिसमें उसने मृत्यु पर किसी पर दोषारोपण नहीं लगाई है. और न ही हत्या का कारण बताई है. हमारा दावा है कि निरुपमा कुमारी किसी अंदरूनी कारण से, जो हम सभी परिवार नहीं जानते हैं, के कारण फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है’.

निरुपमा की मां 7 अप्रैल को सीजेएम कोर्ट के जरिए थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में लिखती हैं, ‘...दिनांक 29/4/2010 को मृतका निरुपमा पाठक द्वारा लगातार रोने की क्रिया-कलाप को देखकर मृतका की मां ने जब अपनी बच्ची से पूछा तो वह अपनी माता को मुद्दालय द्वारा किए गए वादे और धोखाधड़ी के बारे में बताया.’

निरुपमा के पिताजी ने पुलिस को दिए बयान में ही एक बार लिखा है “... न ही हत्या का कारण बताई है...” क्या एक राष्ट्रीयकृत बैंक में काम कर रहे पढ़े-लिखे पाठक जी हत्या और आत्महत्या का अंतर नहीं समझते या जाने-अनजाने में वो वह सच लिख बैठे जिसे छुपाने की जी-तोड़ कोशिश में उन्होंने पूरे परिवार को झोंक रखा है.

धर्मेंद्र पाठक 30 अप्रैल को लिखकर देते हैं कि उनके और उनके परिवार को नहीं मालूम है कि निरूपमा ने ऐसा क्यों किया. मतलब परिवार को 30 अप्रैल तक यह पता नहीं था कि निरुपमा ने खुदकुशी क्यों की. लेकिन अचानक जब हत्या के आरोप में मां जेल चली जाती हैं तो 7 मई को कोर्ट के आदेश पर दर्ज प्राथमिकी में निरुपमा की मां दावा करती हैं कि 29 अप्रैल को ही निरुपमा ने उनसे रोते हुए बताया था कि उसके साथ प्रियभांशु ने धोखाधड़ी की है.

हम किसे सच मानें, पिता को जो पत्नी के बताने के आधार पर पुलिस में लिखित बयान देते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को खुदकुशी का कारण नहीं मालूम है या मां को जो एक हफ्ते बाद प्रियभांशु पर कानूनी दबाव बनाने के मकसद से दायर नालिसी में दावा करती हैं कि उन्हें 29 अप्रैल को ही प्रियभांशु की धोखाधड़ी के बारे में पता चल गया था.

हम बार-बार कहते रहे हैं और फिर दोहराते हैं कि पाठक परिवार 29 अप्रैल से लगातार झूठ बोल रहा है. झूठ बोलने का नुकसान है कि आपको उसे हमेशा याद रखना पड़ता है. पहले परिवार ने कहा कि निरुपमा की मौत करंट लगने से हुई है. फिर कहा कि पंखा से लटककर उसने खुदकुशी की है. फिर कहा गया कि निरुपमा की मां ने पड़ोसियों की मदद से शव को नीचे उतारा. उसके बाद कहा गया कि निरुपमा की मां ने अकेले ही शव को उतार लिया.

इस परिवार ने इतने झूठ बोले हैं कि उसकी गिनती नहीं है. झूठ बोलने के कारण पाठक जी का परिवार खुद ही नंगा हो रहा है. हम मानते हैं कि ये ऑनर किलिंग का मामला है और पुलिस ने निरुपमा के घर वालों को खुला छोड़कर उन्हें सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और उसे नष्ट करने की पूरी छूट दी. पाठक परिवार ने पुलिस से मिली इस छूट का पूरा फायदा भी उठाया.

सुसाइड नोट का सच?

सुसाइड नोट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया है लेकिन अंत में चार लाइन हिन्दी में भी लिखा गया है जिसमें निरुपमा ने अपना अंतिम संस्कार गया में करने की गुजारिश की है. सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में लिखी गई बातें और हिन्दी में लिखी गई गुजारिश उसकी लिखावट से मेल खाती हैं, ये प्रियभांशु और उसके दोस्तों ने पुलिस को बताया है. लेकिन सुसाइड नोट में अंग्रेजी के कुछ शब्दों को तोड़ दिया गया है जो एक शब्द हैं और निरुपमा ऐसी गलतियां नहीं करती थी. ये संदेह पैदा करता है कि उससे जबरन यह नोट लिखवाया गया होगा.

इस सुसाइड नोट को निरुपमा ने लिखा या नहीं लिखा, स्वेच्छा से लिखा या इसे उससे जबर्दस्ती लिखवाया गया, ये सिर्फ निरुपमा ही जानती होगी या उससे जबरिया लिखवाने वाले. पुलिस और फॉरेंसिक टीम की जांच से भी इसमें से कुछ बात सामने आ सकती है.

लेकिन निरुपमा को न्याय अभियान इस बात को पचा नहीं पा रहा कि उसने खुदकुशी की होगी. 28/29 अप्रैल तक की उसकी बातचीत या एसएमएस से कहीं से ऐसा नहीं लगता कि उसने खुदकुशी की कोई सोच बनाई थी. इस सुसाइड नोट पर तारीख के साथ भी छेड़छाड़ की बात सामने आई है.

एक और बात जिसको लेकर संदेह पैदा होता है. निरुपमा के सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में दस्तखत के नीचे हिन्दी में भी एक दस्तखत किया गया है. सवाल यह है कि निरुपमा ने जब अंग्रेजी में दस्तखत कर दिया था तो उसे दोबारा हिन्दी में दस्तखत करने की जरूरत क्या थी. क्या हम-आप किसी भी पेपर पर अंग्रेजी और हिन्दी में एक साथ दस्तखत करते हैं या सिर्फ एक ही दस्तखत करते हैं.

आप भी देखिए निरुपमा के सुसाइड नोट पर हिन्दी में उसके दस्तखत को और बगल में हिन्दी में लिखी गई उन चार पंक्तियों को. क्या दोनों की लिखावट एक लगती है, किसी अक्षर से, शब्द और अक्षर लिखने के तौर-तरीके से, अक्षरों की किसी गोलाई से. हमारी आंखों को तो ऐसा लगता है कि सुसाइड नोट पर हिन्दी का हस्ताक्षर निरुपमा का नहीं है. बल्कि अगर नीचे लगाई गई उसके पिता धर्मेंद्र पाठक की चिट्ठी, उसके पिता धर्मेंद्र पाठक का हस्ताक्षर देखें तो आपको मसहूस होगा कि निरुपमा के हिन्दी दस्तखत का ज्यादातर हिस्सा उनके पिता की लिखावट और उनके दस्तखत से मेल खाता है. आप खुद देखिए और तय कीजिए कि निरुपमा का हिन्दी हस्ताक्षर उसकी लिखावट से मेल खाता है या उसके पिताजी की लिखावट से.

अगर खुदकुशी तो जिम्मेदार कौन ?

इस संदर्भ में चलते-चलते एक और बात. हम कतई नहीं मानते कि निरुपमा ने खुदकुशी की है लेकिन एक पल के लिए मान भी लें कि यह “सुसाइड नोट” सही है जैसा पाठक परिवार दावा कर रहा है तो इसके मुताबिक निरुपमा ने अपनी कथित “सुसाइड” के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया है. फिर किस आधार पर पाठक परिवार निरुपमा की कथित “सुसाइड” के लिए प्रियभांशु को जिम्मेदार ठहरा रहा है? लेकिन पाठक परिवार क्यों परवाह करे जो निरुपमा के बाद अब सच की हत्या करने पर तुला हुआ है.

सबसे बड़ी बात, अगर ये खुदकुशी थी तो खुदकुशी के लिए निरुपमा को मजबूर तो उसके परिवार ने किया जो उसे पसंद का जीवनसाथी नहीं चुनने दे रहा था. टिकट कटे होने के बावजूद 28 अप्रैल को निरुपमा को दिल्ली आने से रोक लिया गया, निरुपमा के अखबार के दफ्तर में फोन करके इस्तीफे की बात की गई. बातचीत पर ऐसी पाबंदी लगाई गई कि उसे बाथरूम में जाकर एसएमएस करना पड़ा. एक तरह से निरुपमा की जिंदगी पर ‘सनातनी सरकार’ ने कर्फ्यू लगा रखा था. इसी आशंका से निरुपमा 14 अप्रैल को ही मां की बीमारी की खबर मिलने के बावजूद तुरंत कोडरमा आने का फैसला नहीं कर पाई और 17 अप्रैल को टिकट कटाकर 19 अप्रैल को चलकर 20 अप्रैल को कोडरमा पहुंची.

कोई बाप अपनी पसंद से बाहर शादी की चाहत के एवज में बेटी को जितनी मानसिक यातना दे सकता है, धर्मेंद्र पाठक ने उसमें कोई कसर नहीं रखी. पाठक परिवार को तो खुदकुशी के उनके ही दावे के हिसाब से भी खुदकुशी के उकसावे की सजा के लिए तैयार रहना चाहिए. इस मामले में मुख्य आरोपी ‘सनातनी चिट्ठी’ के लेखक निरुपमा के पिता धर्मेंद्र पाठक ही होंगे और घटना के दिन कोडरमा में न होने की उनकी दलील भी इसमें काम नहीं आएगी.

निरुपमा पाठक की हत्या से जुड़े हर उस तथ्य को हमने पिछले छह दिन में सामने रखा है जो हमारे पास उपलब्ध हैं. पुलिस जांच में अगर इससे अलग कुछ ऐसा मिला हो जो अब तक मीडिया में न आया हो तो हमें उससे अनजान माना जाए. निरुपमा की मौत के सच और झूठ की तलाश की यह लिखित श्रृंखला फिलहाल खत्म हो रही है. निरुपमा को न्याय अभियान यकीन दिलाता है कि निरुपमा के हत्यारों को सजा दिलाए बगैर हम चैन से नहीं बैठेंगे. हमें भरोसा है कि निरुपमा को न्याय दिलाने के संघर्ष में जब और जिस रूप में हमें आपकी मदद की जरूरत पड़ी, आप हमारे साथ होंगे.

साभार- मोहल्ला

निरुपमा का सिमकार्ड क्यों छुपाया गया ?

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- पांचवीं कड़ी


निरुपमा 19 अप्रैल को दिल्ली से निकली और 20 अप्रैल को घर पहुंच गई. अपनी ट्रेन के कोडरमा स्टेशन पहुंचने से कुछ देर पहले उसने प्रियभांशु को फोन किया और बताया कि वो पहुंचने वाली है. इसके बाद दोनों के बीच कोई बातचीत 28 अप्रैल तक नहीं हुई. इस आठ दिन तक दोनों के बीच बातचीत का जरिया एसएमएस था. प्रियभांशु को निरुपमा ने जो एसएमएस भेजे, उससे भी ये साफ है कि उसे एसएमएस तक भेजने के लिए बाथरूम जाना पड़ता था.

28 अप्रैल को जब तकरीबन आठ दिनों के अंतराल पर दोनों की बात हुई तो वो वह दिन था जब निरुपमा को दिल्ली लौटने के लिए ट्रेन पकड़नी थी. मोबाइल पर हुई बातचीत में रोती-बिलखती निरुपमा ने प्रियभांशु से कहा कि उसे घर वाले आने नहीं दे रहे हैं, उसकी जानकारी के बगैर शायद उसके दफ्तर बिजनेस स्टैंडर्ड में उसका इस्तीफा भेज दिया गया है, उस पर मां और भाई के दोस्त निगरानी रख रहे हैं. प्रियभांशु ने उससे कहा कि वो पुलिस की मदद लेता है तो निरुपमा ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया. प्रियभांशु ने उससे घर से किसी तरह निकलकर ट्रेन पकड़ने या रांची आ जाने के लिए भी कहा. ये भी कहा कि वो उसे लेने रांची आ जाता है या फ्लाईट में टिकट बुक करा देता है जिससे वो सकुशल दिल्ली आ सके .

प्रियभांशु का कहना है और परिस्थितियों के अनुसार बिलकुल तार्किक भी लगता है कि आखिरी एसएमएस में ‘एक्सट्रीम स्टेप’ से निरुपमा का आशय यही था कि पुलिस को बिना मेरे कहे मत बोलना. 28 अप्रैल और घर पहुंचने के बाद से निरुपमा ने प्रियभांशु को जो एसएमएस किए उससे साफ है कि वो घर से फोन नहीं कर पा रही थी, उसे एक एसएमएस तक करने के लिए बाथरूम जाना पड़ता था.

यहां ये बताना जरूरी लग रहा है कि जब 14 अप्रैल को निरुपमा के भाई समरेंद्र पाठक ने फोन करके मां की रीढ़ की हड्ड़ी टूटने की जानकारी देते हुए उसे घर जाने को कहा तो निरुपमा ने समरेंद्र से कहा कि अगर मां की हालत इतनी गंभीर है तो वो खुद क्यों नहीं कोडरमा जा रहा. समरेंद्र ने कहा कि पहले निरुपमा जाए, वो बाद में पहुंचेगा. इसके बाद निरुपमा ने उसी दिन अपने दफ्तर के एक दोस्त के आईआरसीटीसी खाते से कोडरमा से 28 अप्रैल के लौटने का टिकट कटा लिया. लेकिन जाने का टिकट उसने तत्काल कोटे से 17 अप्रैल को लिया और तब 19 अप्रैल को रवाना हुई.

14 अप्रैल को मां की रीढ़ की हड्डी टूटने की सूचना मिलने के बावजूद उसने कोडरमा जाने का फैसला 16 अप्रैल को लिया और 17 अप्रैल को तत्काल कोटे से 19 अप्रैल का टिकट लिया. तत्काल कोटे से टिकट 15 अप्रैल की सुबह भी कटाया जा सकता था लेकिन दो दिन तक उसने यह तय करने में लगाया कि उसे जाना चाहिए या नहीं.

घर वालों की तरफ से प्रियभांशु से रिश्ते को लेकर इनकार, राहू की खराबी और विनाश की धमकी के साथ पिता की चिट्ठी के मद्देनजर निरुपमा की मनोदशा को भी समझने की जरूरत है कि उसे 14 अप्रैल को जब घर जाने का निर्देश भाई से फोन पर मिलता है तो वह सबसे पहले जाने का टिकट कटाने की बजाय उसी दिन अपनी वापसी का टिकट कटाती है. यानी उसने जाने का फैसला तब तक नहीं किया लेकिन यह तय कर लिया था कि अगर जाएगी तो 28 अप्रैल को तो लौट ही आएगी. इस मनोदशा को समझने की जरूरत है कि मां की बीमारी की खबर सुनकर भी एक बेटी घर जाने और न जाने की उलझन में क्यों थी, कौन सा खौफ इसके पीछे काम कर रहा था.

बिजनेस स्टैंडर्ड में जिस दोस्त के आईआरसीटीसी खाते से उसने 28 अप्रैल की वापसी के लिए टिकट कटाया था, उससे निरुपमा ने कहा था कि हो सकता है कि ये उसे घर बुलाने की साजिश हो और घर वाले फिर उसे आने न दें और वहीं किसी से शादी करवा दें. इस दोस्त से निरुपमा ने कहा था कि वो 30 अप्रैल का भी एक वापसी टिकट कटा लेती है ताकि अगर घर वाले 28 को नहीं आने दें तो वो दो दिन बाद निकल जाए. लेकिन फिर उसने कहा कि अगर घर वाले 28 को रोक सकते हैं तो 30 को भी रोक लेंगे इसलिए 30 का टिकट रहने दो.

इस दोस्त से निरुपमा ने प्रियभांशु से अपनी शादी की योजना को लेकर ये भी कहा था, ‘ये इतना आसान नहीं है, वे लोग बहुत गुस्सा करेंगे, वो उससे रिश्ता तोड़कर घर छोड़ने भी कह सकते हैं लेकिन कुछ साल बाद सब ठीक हो जाएगा. बाद में तो मान ही जाएंगे, कब तक नाराज रहेंगे.’

एक बार निरुपमा को उसके बड़े भाई समरेंद्र का एसएमएस आया जिसमें उसे एक अंग्रेजी अखबार में छपी एक खबर पढ़ने के लिए कहा गया और यह धमकी दी गई कि ये उसके साथ भी हो सकता है. खबर थी एक लड़की के भाई के हाथों लड़की के पति समेत पति के परिवार के कुछ सदस्यों की हत्या.

होनी-अनहोनी से बेखबर निरुपमा ने 14 अप्रैल को ही 28 अप्रैल का रिटर्न टिकट कटाने के बाद प्रियभांशु से कोडरमा जाने को लेकर मन में चल रही उलझन बताई और अंततः इस आधार पर जाने का फैसला लिया कि अगर भाई की बात में 10 फीसदी भी सच्चाई है तो एक अच्छी बेटी होने के नाते उसे जाना चाहिए. प्रियभांशु ने भी उसके इस फैसले में सहमति दी.

28 अप्रैल को प्रियभांशु ने निरुपमा को जो एसएमएस किए उसमें निरुपमा पाठक से घर से निकलकर रांची आने को कहा गया ताकि वो दिल्ली आ सके. प्रियभांशु ने खुद रांची आने तक की बात की.

एक एसएमएस में प्रियभांशु ने लिखा कि उसे मर जाने का मन कर रहा है. निरुपमा ने आखिरी एसएमएस में ...तुम अपने आप को कुछ मत करना... उसके मद्देनजर ही लिखा होगा. एक एसएमएस में प्रियभांशु ने निरुपमा को लिखा, ....मुझे भूल जाओ कहने से पहले एक बार भी नहीं सोचा आपने... ये सारी बातें 28 अप्रैल की हैं.

निरुपमा की मां ने सीजेएम कोर्ट के माध्यम से दर्ज कराई गई प्राथमिकी में साफ-साफ लिखा है कि ...प्रियभांशु ने निरुपमा से शादी से इनकार कर दिया, प्रियभांशु जब यह जान गया कि निरुपमा अपने मां के पास पहुंच गई है तो उसने निरुपमा से कहा कि अब अपने घर पहुंच गई हो तो वहीं अभिभावक से कहकर कोई लड़का खोजकर शादी कर लो... निरुपमा घर पहुंच गई थी 20 अप्रैल को और उनकी मां की प्राथमिकी के मुताबिक 29 अप्रैल की सुबह उन्होंने निरुपमा को लगातार रोता हुआ पाया. बीच की किस तारीख को क्या हुआ, ये उन्होंने नहीं बताया.

हम उन्हीं की शिकायत के वाक्य को ठीक से पढ़ें तो ऐसा लगता है कि निरुपमा की मां ये कह रही हैं कि जैसे ही निरुपमा के अपने घर पहुंच जाने की खबर प्रियभांशु को लगी तो उसने निरुपमा से कह दिया कि वहीं घर वालों से कहकर दूसरे लड़के से शादी कर लो, मैं शादी नहीं करने वाला. निरुपमा 20 अप्रैल को ही घर पहुंच गई थी. लेकिन 20 अप्रैल से 29 अप्रैल तक के किसी भी एसएमएस से ऐसा नहीं लगता कि प्रियभांशु ने शादी से इनकार कर दिया था या निरुपमा उसकी कथित “धोखाधड़ी” से नाराज थी.

29 अप्रैल की सुबह 5.39 बजे के बाद निरुपमा पाठक की तरफ से प्रियभांशु को कोई एसएमएस नहीं आया, कोई फोन नहीं आया. प्रियभांशु ने एक डिलीवर्ड और दूसरा नन डिलीवर्ड एसएमएस को छोड़कर कई बार फोन लगाया लेकिन निरुपमा का फोन पहुंच से बाहर बताता रहा. जब 29 अप्रैल को दोनों के बीच कोई बात ही नहीं हुई तो प्रियभांशु के कुछ कहने के कारण निरुपमा के रोने की बात गल्प कथा है.

28 तारीख की रात 8.52 बजे तक प्रियभांशु को जो एसएमएस मिला उससे कहीं नहीं लगता है कि निरुपमा प्रियभांशु की तरफ से शादी से इनकार कर देने से उससे नाराज थी. अलबत्ता, वो तो यह दिलासा दे रही थी कि “वो आने की कोशिश करेगी, प्रियभांशु अपना ख्याल रखे. अपने आप को कुछ न करे. कोई एक्सट्रीम स्टेप न उठाए.”

पुलिस ने अब तक निरुपमा के मोबाइल फोन का सिमकार्ड बरामद नहीं किया है जिससे प्रियभांशु से उसकी बातचीत हो रही थी, दोनों के बीच एसएमएस आ-जा रहा था. परिवार ने इस सिमकार्ड को गायब कर दिया. ऐसा क्यों किया गया, इसका जवाब पुलिस वाले पाठक परिवार से लेंगे. लेकिन अगर निरुपमा के मोबाइल फोन से सिम को अलग नहीं किया जाता और सिम को गायब नहीं किया जाता तो निरुपमा के मोबाइल फोन से आए और उसे मिले सारे एसएमएस पूरा सच सामने रख देते.

इससे हमें भी पता चल जाता कि प्रियभांशु ने उससे ऐसा क्या कह दिया था कि उसकी मां के मुताबिक “वो रोने लगी और उसे खुदकुशी करनी पड़ी.” ऐसा सामने आने पर हम प्रियभांशु के खिलाफ भी उतनी ही ताकत के साथ लड़ेंगे जिस जिद के साथ निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए परिवार के खिलाफ खड़े हैं. लेकिन अभी तक तो यही लगता है कि प्रियभांशु और निरुपमा अपने आखिरी एसएमएस तक अपने प्रेम, साथ रहने और शादी को लेकर आशान्वित थे, अपने प्यार को शादी के बंधन में बांधने के रास्ते तलाश रहे थे. इसलिए ऐसा कोई भी सबूत पाठक परिवार पुलिस के हाथ नहीं लगने देना चाहता था जो उसकी झूठी कहानी को नंगा कर दे. हमें गुस्सा तो पुलिस पर आ रहा है जो अब तक पाठक परिवार से सिमकार्ड नहीं ले पाई है.

निरुपमा की मां को वह तारीख पता ही नहीं है कि किस दिन प्रियभांशु ने निरुपमा से शादी से इनकार कर दिया. ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रियभांशु ने न तो शादी से इनकार किया था और न ही ये कहा कि वो अपने घरवालों से कहकर वहीं कोई लड़का देखकर शादी कर ले. ये निरुपमा के परिवार और उनके वकीलों की रची-बुनी ऐसी सी-ग्रेड की फिल्मी कहानी है जो प्रेम का अपमान करती है, उसका मजाक उड़ाती है.

निरुपमा पाठक शादी से इनकार करने के बाद प्रियभांशु रंजन को भावनात्मक और लगाव भरे एसएमएस करने की बजाय गाली दे रही होती, ये कह रही होती कि तुमने मुझे धोखा दिया है, तुमने मेरे भरोसे को तोड़ा है. ऐसा कुछ भी निरुपमा ने नहीं कहा, लेकिन उनकी वह मां कह रही हैं जिन्हें निरुपमा इतना चाहती थी और जिनके बारे में बहुत से लोगों को लगता है कि वे निरुपमा कि “हत्या” कैसे कर सकती हैं? लेकिन अफसोस, सुधा पाठक तो उस परिवार की महिला हैं जिसके मुखिया इस शादी के इतने खिलाफ थे कि उन्होंने अपनी बेटी को दो पन्ने की चिट्ठी लिखी और उसमें लिखा कि धर्म विरुद्ध कार्य तुम्हें पूरी तरह चौपट कर देगा.

इस पूरे प्रकरण में शादी के खिलाफ कोई दिखता है तो धर्मेंद्र पाठक दिखते हैं. पत्नी के रूप में निरुपमा की मां के पास और कोई चारा भी नहीं होगा कि वो पति की चाहत से अलग कुछ करें. एक धर्मांध पिता कितना पुरुषवादी मानसिकता वाला और कितना आदर्श पति होगा, ये समझा जा सकता है.

नीरू (उसके दोस्त उसे इसी नाम से बुलाते थे) आज इस दुनिया में नहीं है. मेरा उससे या प्रियभांशु से इस हादसे से पहले कोई सीधा परिचय भी नहीं था लेकिन इन बच्चों के दोस्त और जानने वाले कहते हैं कि प्रियभांशु को लोग नीरू की बात न टालने के कारण ‘जोरू का गुलाम’ कहने लगे थे. अपनी नीरू की इस ‘गुलामी’ के कारण उसने चाहते हुए भी न तो पुलिस की मदद ली और न एक बार तय हो गई तारीख पर शादी ही की.

अगर निरुपमा की बात मानना प्रियभांशु की गलती थी तो वह गलती उसने की. इसकी उसे बहुत बड़ी सजा मिल गई है. उसने नीरू को खो दिया है. लेकिन प्रेम में ऐसी गलती कौन नहीं करता है? आखिर प्रेम में सब कुछ विश्वास पर चलता है. निश्चय ही, निरुपमा और प्रियभांशु को यह विश्वास रहा होगा कि थोड़े-बहुत विरोध के बाद निरुपमा के घर वाले मान जाएंगे या अधिक से अधिक घर से निकाल देंगे लेकिन वे हत्या तक पहुंच जाएंगे, ऐसा उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा.

घर में रहने से सुरक्षा की भावना जगती है, ताकत मिलती है कि हम अपने घर में हैं. लेकिन मां की रीढ़ की हड्डी टूटने की खबर के बावजूद निरुपमा घर जाने से हिचकिचा रही थी. ये सिर्फ हम सबका नहीं बल्कि निरुपमा के परिवार का भी दुर्भाग्य है कि एक मेधावी और होनहार पत्रकार का अपने परिवार पर भरोसा गलत साबित हुआ और उसकी हिचकिचाहट सही साबित हुई.


साभार- मोहल्ला

Thursday, May 27, 2010

प्रियभांशु और निरुपमा के साझे दोस्तों से पूछताछ

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- चौथी कड़ी

दिल्ली पहुंचे कोडरमा पुलिस के एक अधिकारी शिव प्रसाद ने दिल्ली में तीन दिनों तक प्रियभांशु के अलावा प्रियभांशु और निरुपमा के कुछ ऐसे दोस्तों से लंबी पूछताछ की थी जिनका भी नाम दोनों के बीच एसएमएस संवाद में आया था या प्रियभांशु के जवाब में जिनका जिक्र आया था.

6 मई को पहले दिन की पूछताछ में प्रियभांशु से निरुपमा और उसके रिश्तों के तमाम आयाम पर बहुत सारे सवाल किए गए. उससे ऐसे सवाल भी किए गए जिसे हम यहां नहीं लिख सकते लेकिन उन सवालों का मकसद यह मालूम या साबित करना था कि प्रियभांशु ने निरुपमा के साथ जबर्दस्ती संबंध बनाए थे. उससे बार-बार पूछा गया और कई बार तो एक साथ छह लोगों ने चिल्लाकर पूछा कि क्या निरुपमा से उसकी कभी अनबन हुई थी. हर सवाल का सच उसने बताया.

उसने पुलिस को ये भी बताया कि दोनों ने 6 मार्च को शादी करने का फैसला किया था और इसके लिए आर्य समाज मंदिर में अग्रिम भुगतान भी कर दिया गया था. इस शादी का निमंत्रण दोनों ने अपने भरोसेमंद और नजदीकी दोस्तों को दिया. कुछ दिल्ली भी आ गए थे और कुछ ने तोहफे खरीद लिए थे. लेकिन फिर निरुपमा ने शादी से पहले कहा कि वो अपने घर वालों को मनाने की एक कोशिश और करना चाहती है. निरुपमा के इस विचार पर प्रियभांशु ने भी सहमति दे दी.

पूछताछ में पुलिस वालों के दो सवाल ऐसे थे जिसका जवाब प्रियभांशु के पास नहीं था. पहला सवाल ये था कि उसे कैसे नहीं पता था कि निरुपमा मां बनने वाली है और दूसरा सवाल था कि निरुपमा ने उसे 29 अप्रैल की सुबह 5.39 बजे के बाद भी कुछ एसएमएस किए थे, जिसे उसने मिटा दिया है और उसके बारे में छुपा रहा है.

प्रियभांशु रंजन ने पुलिस को बताया कि अगर निरुपमा मां बनने वाली थी तो वो बच्चा उसका ही है लेकिन निरुपमा ने उसे ये नहीं बताया था, ये भी उतना ही सच है. जब इस पर भ्रम फैला तो कहा गया कि प्रियभांशु को ये कैसे नहीं पता हो सकता, वो लोगों को उल्लू बना रहा है. सच्चाई की तलाश में कुछ पत्रकारों ने स्त्री रोग विशेषज्ञों से बात की. इस बातचीत के बाद डॉक्टरों के हवाले से अखबारों में खबर छपी कि शरीर के अंदरूनी कारणों से यह संभव है कि खुद निरुपमा को ही इस बात का पता न हो कि वो मां बनने वाली है.

29 अप्रैल की सुबह 5.39 बजे के बाद के एसएमएस के सवाल पर प्रियभांशु ने बताया कि उसे मिला आखिरी एसएमएस सुबह 5.39 बजे का ही है. चौंकाने लायक बात यह भी है कि यह आखिरी एसएमएस उसे 28 अप्रैल की रात 8 बजे भी मिला था और उसी रात 8.52 बजे भी मिला था. एक ही एसएमएस उसे तीन बार मिले जो निरुपमा के मोबाइल से आए आखिरी तीन मैसेज थे और तीनों में संदेश एक ही था.

एसएमएस में निरुपमा ने प्रियभांशु को लिखा था, ‘मैं आने की कोशिश करूंगी. तुम पेशेंस रखो. और बिना मेरे कहे कोई एक्सट्रीम स्टेप मत उठाना. मेरी अंकिता से बात हुई है. तुम अपने आप को कुछ मत करना.’ इस एसएमएस से पहले भी दोनों के बीच 28 अप्रैल को मोबाइल पर एक बार बात हुई और कुछ एसएमएस आए-गए.

दोनों के बीच एसएमएस और फोन पर क्या बात हुई, इस पर अगले दिन बात करेंगे. इस पूछताछ में एक अहम बात ये थी कि कोडरमा से जो अधिकारी शिव प्रसाद पूछताछ के लिए दिल्ली आए थे उन्होंने पूछताछ के लिए बुलाए गए निरुपमा के एक मित्र को पूछताछ के बाद दो घंटा तक ब्रह्म ज्ञान दिया.

शिव प्रसाद ने उससे कहा, “एक अच्छे पेशेवर और एक अच्छा दोस्त तो बाद में बनोगे, पहले एक अच्छा इंसान बनो. एक अच्छा इंसान होने के नाते तुम्हारा फर्ज बनता था कि तुम उन्हें रोकते, उन्हें समझाते कि घर वालों की मर्जी से शादी करो, अगर घर वाले नहीं कहते हैं तो शादी मत करो. आजकल बच्चों का संस्कार खराब हो गया है. वो धर्म, जाति और संस्कार समझते ही नहीं. आप जैसे लोगों के कारण संस्कृति खराब हो रही है, ये आपकी पीढ़ी की समस्या है.”

इन अधिकारी महोदय ने ये भी कहा कि उनका एक बेटा और एक बेटी है, अगर उनके बच्चे ऐसा करते तो वो भी इसे बर्दाश्त नहीं करते. शिव प्रसाद ने ये नहीं बताया कि वो अपने बच्चों के जाति से बाहर मोहब्बत करने और शादी की जिद पर अड़ जाने पर क्या करते लेकिन उसे सहन नहीं करते तो कुछ असहनीय ही करते, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.

शिव प्रसाद के इस ब्रह्म ज्ञान को निरुपमा का मित्र जब मामले का ट्रायल शुरू होगा तो कोर्ट में हलफनामा के साथ दाखिल करेगा. यह इसलिए जरूरी है कि ऑनर किलिंग के मामले में पुलिस ने ऐसे अधिकारी को जांच में क्यों लगाया जो खुद ऐसे विचार, ऐसी मान्यताओं का गुलाम है. एक ऐसा अधिकारी जो निरुपमा और प्रियभांशु के रिश्ते को अपने पुरातन नजरिए से देख रहा है वो आदमी अपनी जांच की दिशा, जांच के बिन्दु और उसके नतीजे कहां ले जाएगा, इसकी कल्पना करके कानून की धड़कन तेज हो सकती हैं.

साभारः मोहल्ला

रस्सी या दुपट्टा, दोनों में से कुछ नहीं ?

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- तीसरी कड़ी

निरुपमा के पिता धर्मेंद्र पाठक ने गोंडा से कोडरमा पहुंचने के बाद 30 अप्रैल को पुलिस को अपनी पत्नी सुधा पाठक के हवाले से लिखित बयान दिया, ‘....तो उसे पंखा से लटका मृत पायी. अगल-बगल के लोगों के सहयोग से उसे फांसी लगा रस्सी से नीचे उतारा गया’.

खुद निरुपमा की मां सुधा पाठक ने जब 7 मई को सीजेएम कोर्ट में नालिसी दायर किया तो उसमें वो लिखती हैं, ‘...कमरे के पंखे से अपना दुपट्टा का फंदा लगाकर आत्महत्या किया हुआ पाया.’

निरुपमा की मौत को आत्महत्या मानने वाले पत्रकारों ने लिखा है कि पुलिस से पूछताछ में निरुपमा की मां ने बताया, ‘मैं दौड़ कर पलंग पर चढ़ी और उसके गले में लगे फंदे को खोली. निरुपमा पलंग पर गिर गई. मेरे चिल्लाने की आवाज सुनकर कई लोग अंदर आ चुके थे. मैं दौड़कर सामने के बाथरूम में जाकर पानी लाई और निरुपमा के चेहरे पर जोर-जोर से मारने लगी. उसी दौरान निरुपमा की कराह सुनने को मिली और उसके बाद आस-पड़ोस से आए लोगों के साथ मिलकर पार्वती नर्सिंग होम ले गए जहां डॉक्टर ने उसे देखने के बाद मृत घोषित कर दिया.’

क्या निरुपमा के परिवार को रस्सी और दुपट्टे का अंतर नहीं पता है. उसके पिताजी जिसे रस्सी कह रहे हैं, उसकी मां उसे दुपट्टा कह रही हैं. पिता ने कहा कि पास-पड़ोस के लोगों की मदद से निरुपमा का शव पंखे से उतारा गया. मां ने पुलिस को बताया कि उन्होंने अकेले ही ऐसा कर लिया.

यहां यह बताना जरूरी है कि निरुपमा को जब मां की बीमारी की खबर देकर घर बुलाया गया था तो भाई समरेंद्र पाठक ने यह बताया था कि मां की रीढ़ की हड्डी टूट गई है. ऐसा निरुपमा ने प्रियभांशु और अपने दफ्तर के मित्रों से कहा था. निरुपमा की मां पीठ की बीमारी से परेशान हैं, ऐसा टीवी पर दिखी उनकी तस्वीरों से लगता है. बावजूद सुधा पाठक ने अकेले निरुपमा का शव पंखे से उतार लिया, यह कहना जितना आसान है, पचाना उतना ही मुश्किल है.

मां ने पुलिस को यह भी बताया है कि निरुपमा के शरीर के पलंग पर गिर जाने के बाद उन्होंने पानी का छींटा मारा तो वो कराह उठी. उसके बाद उसे पार्वती अस्पताल ले जाया गया. पिताजी ने पुलिस को लिखकर दिया कि उसे पंखे पर ही मृत पाया गया. जब पंखे पर ही निरुपमा की मौत हो चुकी थी तो नीचे गिरने के बाद वो कैसे कराह सकती है.

यह याद रखना बहुत जरूरी है कि 30 अप्रैल को धर्मेंद्र पाठक ने पुलिस को जो लिखित बयान दिया वो उन्होंने अपनी पत्नी का हवाला देते हुए दिया था. सुधा पाठक ने हत्या के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद प्रियभांशु को दबाव में लेने के मकसद से 7 मई को नालिसी दायर की तो बयान बदल गया, तथ्य बदल गए. फिर याद दिलाना चाहता हूं कि झूठ बोलने का नुकसान ये है कि उसे हमेशा याद रखना पड़ता है और सच खुद-ब-खुद सामने आ जाता है.

हमने अब तक किसी डॉक्टर से इस बारे में नहीं पूछा है लेकिन हम जरूर पता करेंगे कि क्या फांसी के फंदे से उतारने के बाद अगर किसी में इतनी जान बची हो कि वो कराह उठे तो क्या यह संभव है कि उसकी जान चली जाए क्योंकि ऑक्सीजन की आपूर्ति तो फंदा से मुक्त होते ही बहाल हो चुकी होती है.

हमारी जानकारी यह है कि निरुपमा के शव को उनकी मां के अलावा किसी और ने पंखे से लटका हुआ नहीं देखा. जिसने भी देखा, सबने पलंग पर ही देखा. एक अपुष्ट खबर है, पुलिस को शायद सच पता हो, जब निरुपमा की मां से फंदे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने किसी दूसरे कमरे से लाकर एक दुपट्टा दिया. अगर ऐसा है तो सवाल ये उठता है कि पंखे से शरीर नीचे गिर गया था लेकिन फंदा कैसे गिरा और गिरा तो दूसरे कमरे में कैसे चला गया. हो सकता है कि हमारी ये जानकारी गलत हो क्योंकि हम कोडरमा के बारे में सिर्फ सुनी-सुनाई या पुलिस रिकॉर्ड में आई बातों को ही जान पाते हैं.

हमें उम्मीद है कि इसका जवाब पुलिस की जांच से सामने आ जाना चाहिए. कोडरमा में निरुपमा ही थी जिसे हम जानते थे. वो नहीं है तो हमारी सोच, हमारी राय का कोडरमा में कोई मोल नहीं है. हमें कोडरमा में हो रही चीजें मीडिया से पता चलती हैं. कोडरमा के कुछ लोगों को लगता है कि प्रियभांशु ने ब्राह्मण न होते हुए भी एक ब्राह्मण लड़की से प्यार करके, शादी से पहले उसे मां बनाकर बहुत बड़ा गुनाह किया है और इसके लिए उसे फांसी की सजा मिलनी चाहिए.

हम सनातनी गैंग की ये हसरत पूरी नहीं होने देंगे क्योंकि ये देश संविधान के दायरे में केंद्र सरकार के बनाए कानूनों और समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसलों के हिसाब से चलता है. हमारा यकीन है कि कानून और कोर्ट के लिहाज से प्रियभांशु ने कोई भी गैर-कानूनी काम नहीं किया है.

साभार- मोहल्ला

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर यकीन न करने की वजह नहीं

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- दूसरी कड़ी

निरुपमा के पिताजी और भाई के घर आने के बाद 30 अप्रैल को निरुपमा पाठक के शव का पोस्टमार्टम किया गया. पोस्टमार्टम विश्वसनीय, सटीक और स्पष्ठ हो इसके लिए एक डॉक्टर की बजाय मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की मांग आईआईएमसी एल्युमनी एसोसिएशन के सदस्यों ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक, कोडरमा के उपायुक्त और आरक्षी अधीक्षक को फैक्स भेजकर की थी.

निरुपमा को न्याय अभियान कोडरमा प्रशासन की तारीफ करना चाहता है कि उसने मेडिकल बोर्ड बनाने का फैसला लेके राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पाठक परिवार की तरफ से पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ मन-मुताबिक छेड़छाड़ की तमाम संभावनाओं को खारिज कर दिया. 30 अप्रैल को पोस्टमार्टम हुआ. 2 मई को उसकी रिपोर्ट आई. रिपोर्ट में ये साफ तौर पर लिखा गया कि निरुपमा पाठक की मौत का कारण स्मॉदरिंग के कारण दम घुटना है.

स्मॉदरिंग के जरिए हत्या वह क्रूर प्रक्रिया है जब किसी की नाक और मुंह को एक ही बार दबाकर उसकी सांस रोक दी जाए. दम घुटने से मौत के मामलों में पोस्टमार्टम के लिए डॉक्टर समुदाय ने आम तौर पर तीन टर्म तय किए हैं. जब आदमी की मौत फांसी पर झूलने से हो तो उसे डॉक्टर एसफिक्सिया एज ए रिजल्ट ऑफ हैंगिंग लिखते हैं. जब किसी की गला दबाकर हत्या की जाती है तो उसमें एसफिक्सिया एज ए रिजल्ट ऑफ स्ट्रैंगुलेशन लिखा जाता है और जब किसी की हत्या नाक और मुंह दबाकर की जाए तो उसे एसफिक्सिया एज ए रिजल्ट ऑफ स्मॉदरिंग लिखते हैं.

डॉक्टरों का कहना है कि मेडिकल इतिहास में स्ट्रैंगुलेशन और स्मॉदरिंग का कोई भी मामला खुदकुशी का नहीं मिला है. यानी जब भी मौत के कारण में स्मॉदरिंग या स्ट्रैंगुलेशन लिखा हो तो यह माना जाता है कि पीड़ित या पीड़िता की हत्या हुई है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर कुछ सवाल उठे. मौत का समय छोड़ दिया गया. विसरा नहीं रखा गया. भ्रूण भी नहीं सहेजा गया. एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट किसी शव के बारे में कई तरह की सूचना का समेकित दस्तावेज होता है. इसमें मौत के कारण, समय के अलावा और भी कई चीजें शामिल हैं.
पोस्टमार्टम के लिए बनाए गए तीन डॉक्टरों के बोर्ड ने पोस्टमार्टम हाउस के बाहर पाठक परिवार और मीडिया की मौजूदगी में शव का अन्त्यपरीक्षण किया और पाया कि निरुपमा के गले की हड्डी नहीं टूटी है. उसके गले पर बना फंदे का निशान मौत के बाद का है. मौत का कारण स्मॉदरिंग के कारण दम का घुटना है.

मेडिकल बोर्ड ने यह राय एकमत रूप से दी. मौत का समय लिखना मेडिकल बोर्ड के सदस्य भूल गए जिसे बाद में सुधार लिया गया. विसरा नहीं रखने की वजह मेडिकल बोर्ड ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ही साफ कर दी और साफ-साफ लिखा कि विसरा रखने की जरूरत नहीं है.

फिर ये विवाद पैदा किया गया कि पोस्टमार्टम टीम में शामिल एक डॉक्टर का यह पहला पोस्टमार्टम था. यह बहुत गहराई से समझने की जरूरत है कि मेडिकल बोर्ड में अपनी जिंदगी का पहला पोस्टमार्टम कर रहे डॉक्टर साहब के साथ दो और डॉक्टर साहब भी थे जिन्होंने इससे पहले भी कई पोस्टमार्टम किए थे. मौत का कारण सिर्फ अपने करियर का पहला पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर साहब ने नहीं लिखा था, बाकी दोनों डॉक्टर साहब भी उस रिपोर्ट को तैयार करने में शामिल थे. ऐसा नहीं था कि नए वाले डॉक्टर साहब ने अवलोकन का नतीजा दिया और बाकी दोनों ने अनुशंसा या संस्तुति की. तीनों डॉक्टर पोस्टमार्टम के दौरान मौजूद थे, तीनों ने अपनी-अपनी आंखों से देखा और नतीजा एक पाया. मेडिकल बोर्ड का गठन इसी उद्देश्य से तो किया जाता है कि डॉक्टरों की एक बड़ी टीम की राय मिल सके और निरुपमा के मामले में तीन डॉक्टर इस बात पर एकमत हैं कि ये हत्या है, खुदकुशी नहीं.

एक और बात, जिन डॉक्टर साहब के करियर का पहला पोस्टमार्टम था वो भी मेडिकल की शिक्षा और डिग्री लेकर ही नौकरी में होंगे. उन्हें तय रूप से उनकी मेडिकल शिक्षा के दौरान पोस्टमार्टम करना सिखाया गया होगा. इसलिए यह कहना कि ये एक डॉक्टर का पहला पोस्टमार्टम था, रिपोर्ट में दर्ज मौत के कारण पर सवाल नहीं उठा सकता. कई सारे पोस्टमार्टम कर चुके अनुभवी डॉक्टर भी अपने करियर में कभी न कभी पहला पोस्टमार्टम करते होंगे.

मेडिकल बोर्ड ने विसरा नहीं रखने की वजह रिपोर्ट में ही लिख दी. भ्रूण को सुरक्षित नहीं रखने के उनके फैसले पर भी सवाल उठाए गए हैं. भ्रूण क्यों नहीं रखा गया ये तो डॉक्टर साहब लोग ज्यादा बेहतर जानते होंगे लेकिन अपनी समझ है कि अगर दुर्भाग्य से विवाद पैदा हुआ होता तो बच्चे के पिता की पड़ताल में इससे मदद मिलती. लेकिन प्रियभांशु रंजन ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि अगर निरुपमा गर्भवती थी तो बच्चा उसका ही था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट की समीक्षा करते वक्त विशेषज्ञ विसरा और भ्रूण नहीं रखने के मेडिकल बोर्ड के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं. कोई विशेषज्ञ सीधे उनके अवलोकन के नतीजे यानी मौत के कारण पर सवाल नहीं उठा रहा. विधि द्वारा स्थापित किसी भी कोर्ट में किसी की अप्राकृतिक मौत का कारण बताने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही वैध दस्तावेज होता है और निरुपमा के मामले में यह रिपोर्ट कहता है कि उसकी हत्या की गई है.

एम्स के एक विशेषज्ञ साहब ने झारखंड पुलिस को बताया कि मौत का यह मामला उन्हें खुदकुशी ज्यादा प्रतीत होता है. उनके पास पुलिस ने राय बनाने के लिए दो चीजें मुहैया कराई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट और शव की नजदीक से ली गई तस्वीरें. कागज पर लिखे गए पोस्टमार्टम रिपोर्ट को देखकर तो किसी की मौत के कारण पर कोई राय बनाई ही नहीं जा सकती क्योंकि उसके लिए शव को देखना पड़ता है.

विशेषज्ञ साहब ने निश्चित रूप से निरुपमा की तस्वीरों को देखकर राय बनाई होगी. हम भी इसी तस्वीर की बात करते हैं. इस तस्वीर में निरुपमा के गले पर जो फंदे का दाग है, वह कंठ पर है. विशेषज्ञ साहब ने पता नहीं इस बात का ख्याल क्यों नहीं रखा कि पाठक परिवार यह कह रहा है कि निरुपमा पंखे से झूली है. पंखे की ऊंचाई से झूलने पर निरुपमा के बराबर वजन के किसी शख्स के गले पर फंदे का निशान कहां आएगा, क्या विशेषज्ञ साहब इसे सही से नहीं जोड़ पाए.

ये विशेषज्ञ साहब देश के सबसे बड़े अस्पताल के डॉक्टर हैं. उनके अस्पताल में पंखे या ऊंचाई से फंदा लगाकर खुदकुशी के कई मामले आए होंगे. उनके शवों की तस्वीर की लाइब्रेरी चेक करने पर शायद वो अपनी राय बदल पाएं. अनुभव कहता है कि ऐसे मामलों में फंदे का निशान सामने से ठुढ्ढी के थोड़ा नीचे लेकिन गर्दन के ऊपर बनता है और पीछे गर्दन के ऊपर चला जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फंदा शरीर के वजन के कारण उस हद तक ऊपर खिंच जाता है जहां से और आगे वह न जा सके. निरुपमा के गले पर बना निशान वो जगह नहीं है जहां कोई फंदा अटक जाए.

कुछ दिन पहले अखबारों में झारखंड के डीजीपी नियाज़ अहमद साहब के हवाले से खबर आई कि उन्हें उस फॉरेंसिक टीम ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है जो हत्या का मामला दर्ज होने के दो-तीन बाद निरुपमा के घर का बारीकी से मुआयना करने रांची से कोडरमा गई थी. पुलिस दूसरी खेप में 17 मई को भेजे गए सामानों के फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार कर रही है.

घटनास्थल का मुआयना करने वाली पहली फॉरेंसिक टीम ने रिपोर्ट में कहा है कि जिस पंखे से निरुपमा के झूलने की बात कही गई है, वह पंखा पूरी तरह सुरक्षित है, पूरी तरह ठीक-ठाक है. मानो कोई भार उस पर पड़ा ही न हो. जब उस पर कोई भार ही नहीं पड़ा तो इसका मतलब ये है कि निरुपमा पंखे से नहीं झूली और अगर पंखे से नहीं झूली तो खुदकुशी की यह कहानी सच नहीं है.

इस फॉरेंसिक टीम ने भी कहा कि फंदे का निशान गर्दन पर जिस जगह और जिस तरह से बना है, वो पंखे से फांसी झूलने के बाद नहीं बनता. हमें यकीन है कि दूसरे दौर की फॉरेंसिक रिपोर्ट कुछ और सच सामने लाएगी.

निरुपमा को न्याय अभियान का भी मानना है कि निरुपमा के गर्दन पर फंदे का दाग मौत के बाद का है, इसलिए निरुपमा की मौत खुदकुशी नहीं है. फंदे के इस निशान को अगर मौत से पहले का पाया गया होता तो भी यह हैंगिंग न होकर स्ट्रैंगुलेशन होता और वो भी हत्या के दायरे में ही आता है.

साभार- मोहल्ला

दोहरा हत्याकांडः निरुपमा और उसके बच्चे की हत्या

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- पहली कड़ी

निरुपमा पाठक की हत्या और आत्महत्या के पेंच सुलझाने में झारखंड पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. निरुपमा को न्याय अभियान का यकीन है कि यह हत्या है और दोहरी हत्या है. एक निरुपमा पाठक की और दूसरा निरुपमा पाठक और प्रियभांशु रंजन के प्यार की निशानी 10-12 सप्ताह के अजन्मे बच्चे की. हम ये भी मानते हैं कि ब्राह्णण जाति से बाहर निरुपमा की शादी की चाहत के कारण उसके परिवार ने हत्या की. निरुपमा के परिवार का कहना है कि ये खुदकुशी है और इसके लिए उसके प्रेमी प्रियभांशु रंजन ने उसे उकसाया और मजबूर किया.

शुक्रवार को हमने कहा था कि झूठ बोलने का झंझट ये है कि आपको उसे हमेशा याद रखना होता है कि किससे, कब और क्या कहा गया था. इस रिपोर्ट में आपको बार-बार इस बात का अहसास होगा कि झूठ बोलकर अपनी बेटी की हत्या का आरोप झेल रहे परिवार ने अपने चारों ओर किस तरह से कानूनी शिकंजे को और कस लिया है.

ठोस तौर पर एक तरफ हत्या के पक्ष में तकनीकी कारणों से विवाद में आए पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अलावा कई परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं तो दूसरी तरफ खुदकुशी के पक्ष में एक सुसाइड नोट है जिसके साथ छेड़छाड़ की गई है. पुलिस इसके आगे-पीछे की कड़ी तलाश रही है. प्रियभांशु, निरुपमा और प्रियभांशु के साझे दोस्त इस तलाश में उनकी पूरी मदद कर चुके हैं और आगे भी करने के लिए तैयार हैं. निरुपमा के परिजन पहले दिन से सबूत छुपा रहे हैं, झूठ बोल रहे हैं और बयान बदल रहे हैं.

इस मामले से जुड़ी कुछ चीजें सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं. पुलिस की जांच में अगर कोई ऐसी चीज सामने आई हो जिसके बारे में बाहर नहीं बताया गया है तो हम खुद को उस हिसाब से अंधेरे में मान लेंगे. हम सार्वजनिक रूप से उपलब्ध चीजों के आधार पर अपने यकीन को और मजबूत होता देखते हैं कि निरुपमा की हत्या की गई है, न कि उसने खुदकुशी की है. घटनाक्रम को लेकर हम एक-एक कर आगे बढ़ेंगे और क्रम कुछ दिनों तक चलेगा. आप सच को कहने और समझने में हमारा साथ देंगे, ये भरोसा है.

पुलिस को किसने खबर दी

निरुपमा का परिवार निरुपमा के शव को कोडरमा के पार्वती अस्पताल ले गया और मौत की पुष्टि करके वापस लौट आया. पुलिस को सूचना देना उनके एजेंडे में नहीं था. उनका एजेंडा क्या था, क्या वो रात को सारे सबूत मिटाने की साजिश रच रहे थे, ये पुलिस को पता करना है.

पुलिस वाले कह रहे हैं कि निरुपमा के शव को बोलेरो में पार्वती अस्पताल ले जाने वाले लोग पाठक परिवार के पड़ोसी थे लेकिन अस्पताल के जिस स्टाफ ने निरुपमा का नब्ज और आंख देखकर साथ गए 4-5 लोगों को यह बताया था कि लड़की में जान नहीं बची है, उसने कुछ टीवी चैनलों से ऑन कैमरा कहा है कि साथ आए लोगों को उसने कोडरमा शहर में कभी नहीं देखा था. लेकिन पुलिस उस बात पर ज्यादा यकीन करती दिखती है जो मौत को खुदकुशी की तरफ ले जाता दिखता है. कोडरमा के सिविल सर्जन ने भी तो यही कहा था कि इस हत्या में कम से कम तीन लोगों का हाथ रहा होगा. हमारा मानना है कि पुलिस ने पार्वती अस्पताल गए लोगों के बारे में सही से छानबीन नहीं की नहीं तो भंडाफोड़ वहीं से हो सकता था.

कोडरमा पुलिस को निरुपमा की मौत की खबर दिल्ली से प्रियभांशु और उसके करीबी दोस्तों ने दी. प्रियभांशु को यह सूचना निरुपमा और उसके एक साझी दोस्त ने दी थी. उस लड़की को यह सूचना निरुपमा के दूर के किसी रिश्तेदार ने सवालिया लहजे के साथ दी थी. निरुपमा के घर का पता मांगने पर प्रियभांशु ने ही कोडरमा के एसपी साहब को एसएमएस से भेजा. पुलिस इसके बाद निरुपमा के घर तक गई और करंट लगने से मौत और फांसी लगाकर खुदकुशी की दो सूचना के साथ लौट आई.

पुलिस ने फौरन निरुपमा के शव को अपने कब्जे में नहीं लिया. ऐसा क्यों नहीं किया गया, ये समझ से परे है. शव को उसके घर में ही छोड़ दिया गया ताकि निरुपमा के पिता और भाई के कोडरमा पहुंचने के बाद आगे की कार्यवाही की जाए. ऐसा ही हुआ और मौत के अगले दिन पोस्टमार्टम किया जा सका.

पोस्टमार्टम ज्यादा बारीक और सटीक हो, इसके लिए मेडिकल बोर्ड के गठन की मांग भी दिल्ली से निरुपमा और प्रियभांशु के दोस्तों ने की क्योंकि उन्हें मौत की खबर मिलने के बाद से ही लग रहा था कि ये ऑनर किलिंग है.

साभार- मोहल्ला

कोडरमा के “खाप” में सारे सनातनी एक साथ

अपने एक गुरुजी कहा करते थे कि सच बोलने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आपको याद रखने की जरूरत नहीं पड़ती कि आपने क्या कहा था और कब कहा था। झूठ बोलने में सबसे बड़ा झंझट है कि आपको हमेशा ये याद रखना होता है कि आपने कब, किससे, क्या कहा था। निरुपमा पाठक हत्याकांड में पाठक परिवार हालांकि सम्मिलित रूप से झूठ बोल रहा है बावजूद इसके निरुपमा के पापा कुछ कहते हैं तो उनकी माता कुछ और। ये उन दोनों के बयान, मुकदमों की कॉपी से भी साबित हो जाता है। वो झूठ इसलिए नहीं बोल रहे हैं कि झूठ बोलना उनकी फितरत है। उनकी दिक्कत ये है कि सच से बचने के लिए वो जो कह रहे हैं, उसे याद नहीं रख पा रहे हैं कि उन्होंने सोमवार को क्या कहा, मंगलवार को क्या कहा या बुधवार को क्या कहा था। नतीजा हुआ है कि वो पहले दिन कुछ कहते हैं और तीसरे दिन कुछ और। झूठ बोलने का नुकसान यही है।

सच बोलते तो हमेशा एक जैसी बातें करते जैसे प्रियभांशु रंजन ने किया। उसने अंतरंग संबंध कबूल किया लेकिन ये भी कहा कि उसे नहीं पता था कि नीरू मां बनने वाली थी। पुलिस वाले बहुत परेशान हुए, उन्होंने प्रियभांशु से भी कई बार पूछा, घुमा-घुमाकर पूछा लेकिन उसका जवाब एक ही था क्योंकि उसे सचमुच नहीं मालूम था। जब यहां पेंच फंसा तो कुछ अखबारों ने महिला डॉक्टरों से बातचीत करके ये बताया कि मेडिकल कारणों से संभव है कि गर्भ के बारे में नीरू को ही पता न हो। ये बात फिर भी कई की समझ में नहीं आ रही। बहरहाल, आईआईएमसी एल्युमनी एसोसिएशन और निरुपमा को न्याय अभियान से जुड़े हजारों लोगों को यकीन है कि प्रियभांशु रंजन सच कह रहा है। निरुपमा की हत्या हुई है और हत्या उसके घर के लोगों ने ही की है या करवाई है और वो सुसाइड नोट की आड़ में सच छुपा रहे हैं।

कोडरमा के प्रभावशाली पाठक परिवार के बयानों से हम विचलित नहीं होंगे। 7 मई को एक ही दिन में जेल से कोर्ट और कोर्ट से थाना तक का सफर तय करने वाली सुधा पाठक की शिकायत ने देश के कई बड़े वकीलों को हैरत में डाल दिया। सीजेएम साहब ने उस शिकायत पर आदेश जारी करने से पहले पुलिस से रिपोर्ट क्यों नहीं मांगी, ये सवाल हर किसी के मन में है। इस शिकायत के आधार पर दर्ज मामले में प्रियभांशु रंजन पर बलात्कार, शादी का झांसा देकर संबंध बनाने और खुदकुशी के लिए निरुपमा को उकसाने या मजबूर करने का आरोप लगाया गया है।

हमारा 200 फीसदी यकीन है कि निरुपमा की हत्या की गयी है। बावजूद, उसके परिवार के खुदकुशी के दावे को पुलिस की जांच वैज्ञानिक तरीके से अगर साबित कर भी देती है तो भी आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप, उसकी जवाबदेही पाठक परिवार पर बनती है, न कि प्रियभांशु रंजन पर। पाठक परिवार को ये सलाह किसी वकील साहब ने दी होगी कि प्रियभांशु रंजन को मुकदमे में लपेटो क्योंकि हत्या के मामले में वह अहम गवाह होगा। बाद में समझौता करके उसे बरी कर देना और खुद भी बच लेना। निरुपमा को न्याय अभियान पाठक परिवार के वकीलों को साफ करना चाहता है कि ये अभियान ऐसा कोई समझौता नहीं होने देगा और निरुपमा को न्याय दिलाने की लड़ाई में कोई भी गवाह हॉस्टाइल नहीं होगा। अगर ऐसी किसी कोशिश में प्रियभांशु भी पाठक परिवार से हाथ मिलाते नजर आए तो उनके खिलाफ भी लड़ाई लड़ी जाएगी क्योंकि यह अभियान निरुपमा को न्याय दिलाने की जिद के साथ शुरू हुआ है।

पाठक परिवार के प्रभाव में कोडरमा के दो-तीन पत्रकार ‘सूत्रों का कहना है, बताया जाता है’ जैसी लफ्फाजी के साथ तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जिस एसएमसएस को आखिरी एसएमएस बताया जा रहा है, वो एसएमएस प्रियभांशु को 28 अप्रैल की रात 8 बजे से मिलना शुरू हो गया था और 29 अप्रैल की सुबह 5:39 बजे जब वही एसएमएस आया तो वह तीसरी बार था। कोडरमा पुलिस के अधिकारी शिव प्रसाद जब दिल्ली आए थे तो उन्होंने पूछताछ के दौरान बुलाए गए बच्चों को नसीहत दी कि बच्चों को घर वालों की मर्जी से शादी करनी चाहिए, दूसरी जाति में शादी नहीं करनी चाहिए, उनकी भी एक बेटी और एक बेटा है, अगर वो निरुपमा की तरह करेंगे तो उन्हें भी ये मंजूर नहीं होगा। ऐसी घटिया सोच वाले अधिकारियों के दम पर मामला सुलझाने निकली राज्य पुलिस क्या खोजेगी, क्या निकालेगी, ऊपर वाले को ही पता होगा।

कोडरमा में कोई चुनाव हो रहा है तो राजनीतिक दलों के नेता भी इस मामले में पाठक परिवार के साथ नाइंसाफी की आवाज उठा रहे हैं। ये उनकी राजनीति है। हमने राजनीति को अब तक इसमें शामिल नहीं किया है। लेकिन निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए हमें राजनेताओं के दरवाजे खटखटाने और उनसे मदद मांगने से कोई परहेज नहीं है। कोडरमा के कांग्रेस जिलाध्यक्ष ओझा साहब प्रियभांशु को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं जबकि कांग्रेस के राज्य प्रभारी केशव राव पाठक परिवार के प्रभाव को देखते हुए मामले की सीबीआई से जांच की वकालत कर रहे हैं। निरुपमा को न्याय अभियान की तरफ से कोडरमा खाप पंचायत को उनकी नैतिकता और सनातनी सोच मुबारक हो। निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए हम सर्वोच्च न्यायालय तक जाएंगे। रास्ते में पाठक परिवार के साथ कोडरमा का सर्वदलीय खाप भी आता है तो हमें परवाह नहीं है।

निरुपमा की हत्या हुई है, यह साबित करने के लिए इतने सारे सबूत हैं कि हमें यकीन है कि पूरे देश के सनातनधर्मी एकजुट हो जाएंगे तो भी पाठक परिवार को नहीं बचा पाएंगे क्योंकि कानून की लड़ाई सनातनी नैतिकता की दुहाई पर नहीं, तथ्य और सबूत पर लड़ी जाएगी। हम जीतेंगे, निरुपमा के हत्यारे हारेंगे क्योंकि इसके बिना निरुपमा की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। निरुपमा की लड़ाई हमारे लिए सत्येंद्र दुबे और मंजूनाथ की लड़ाई है और हम अपील करते हैं कि आईआईएम और आईआईटी के मित्र भी हमारी मदद करें क्योंकि निरुपमा धार्मिक भ्रष्टाचार से लड़ते हुए शहीद हुई है।

आज की यह पोस्ट तथ्य कम और भाषण ज्यादा है, इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं। शनिवार को निरुपमा को न्याय अभियान हत्याकांड से जुड़े उन सबूतों के आधार पर सिर्फ ठोस बात रखेगा, जो सबूत सबके सामने हैं। पाठक परिवार से प्रभावित लोग उन सबूतों को नजरअंदाज करके नैतिकता की रट लगाए बैठे हैं। पुलिस की जांच में सामने आई ऐसी कोई चीज जो हमारी जानकारी में नहीं है, वो जाहिर तौर पर इसमें शामिल नहीं होगी।

साभार- मोहल्ला

Candle Light Protest at Jantar Mantar

Press Release

New Delhi, 8 May. “Justice for Nirupama” campaign has demanded high level CBI inquiry into Nirupama murder case. It said that local police is messing and derailing the whole investigation. The campaign has appealed the Jharkhand Government to ensure fair investigation with high level supervision.

The Campaign is highly surprised, shocked and pained to see the frivolous charges leveled against Priyabhanshu by the family members of Nirupama. The initial investigation has already established that her family members are habitual liars as they are changing their statement from the beginning.

The campaign believed that this is a ploy to divert the attention of investigation and confuse the police and public. Unfortunately it seems that police is also playing in the hand of conspirators and murderers.

The Campaign has said that autopsy report of Nirupama has confirmed the murder and not suicide. The police have filed FIR against her mother and two-three others.

The campaign today organized a Candle light vigil at Jantar Mantar in which hundreds of batchmates, colleagues, students, teachers, journalists, representatives of women organizations, students, human rights organizations participated.

Silent Protest March at Home Ministry

Press Release/May 15, 2010

To demand a CBI investigation into the Nirupama Pathak murder case, a silent protest march was carried out from Press Club to the Home Ministry, on a joint call from the Press Club of India, The Indian Women Press Corp, Justice for Nirupama Campaign and the IIMC Alumni Association.

The demonstration, carried out to demand justice for journalist Nirupama Pathak, was led by Press Club of India General Secretary Pushpendra Kulshrestha, DUJ President S K Pandey, Senior Journalists Ram Bahadur Rai, Anand Swaroop Verma, Prof Subhash Dhulia, Prof Anand Pradhan, Dilip Mandal, Anil Chamadia and Rajesh Verma; Educationists Prof Anand Kumar, Proj Ajit Jha; social activists working for women’s rights Ranjana Kumari, Sudha Sundarraman, Jagmati Sangwan; and Sucheta, Roshan Kishor and Vijay Pratap from students’ organisations. Besides, journalists, students, teachers, writers and representatives from women and social organizations also turned out in huge numbers.

Two days ago, Jharkhand DGP Neyaz Ahmed had said that the investigation so far indicated that Nirupama had been murdered. Justice for Nirupama Campaign had been pointing out since Day 1 that Nirupama had been murdered because she wanted to get married out of her caste. It is for everyone to see that some officials involved in the probe and the Pathak family have tried to twist the issue and turn the course of investigation in a different direction.

Journalists who participated in the silent march demanded that the case be transferred immediately to the Central Bureau of Investigation (CBI) because the Koderma Police had been handling the case in a very lax, callous and careless way. They added, it also appeared that the officials had been working under pressure from the Pathak family and some political parties. The journalists also demanded that the evidences related to the case be duly preserved because the Pathak family had been hiding and destroying key evidences. It was also sought that the case be tried in a fast-track court so that a strong case could be made against ‘honour killings’ and such a heinous crime could be stopped at once.

Memorandum to PM for CBI investigation

Date: May 18, 2010

To

Shri Manmohan Singh
Honourable Prime Minister
Government of India

Subject: Request for transfer of the Nirupama Pathak murder case to CBI

Dear Sir

We — journalists, writers, intellectuals, students, teachers, and representatives from women and social organizations — seek that the investigation into the murder case of Nirupama Pathak, a young journalist and an ex-student of the prestigious Indian Institute of Mass Communication, be transferred to the Central Bureau of Investigation (CBI).

We would like to draw your kind attention to the shocking murder of Nirupama Pathak, a 22-year-old journalist with Business Standard, who was found dead at her home in Tilaiya, Koderma District (Jharkhand), on April 29, 2010. Her family claimed she had committed suicide, but the autopsy report confirmed it was a murder, and that she had been smothered to death.

We fear that this could be a case of ‘honour killing’ because Pathak was in love with her college friend and fellow journalist Priyabhanshu Ranjan and wanted to marry him. But, her family was opposed to this because Ranjan belonged to a different caste and the Pathak family was strictly against inter-caste marriage.

In spite of the sensitive nature of the case, it appears that the local police have messed up the investigation process. The approach of the police has all through been callous, casual and prejudiced. Owing to this, some crucial evidences were either destroyed or lost. The local police appear to be working under preconceived notions and pressure from the family and political parties, thereby keeping the pace of the investigation process very slow.

We request you to kindly initiate the process to transfer the case to CBI, as the Jharkhand police have been unable to handle the case properly. It is important that justice is ensured to Nirupama because that would send strong signals to those who still keep medieval beliefs and commit such heinous crimes as ‘honour killings’.

Thanking you



The Press Club of India The Indian Women Press Corp

Justice for Nirupama Campaign The IIMC Alumni Association

Facts about Nirupama-Priyabhanshu

• Nirupama Pathak and Priyabhanshu Ranjan were into the relationship for about 2 years. Many of their friends and colleagues at IIMC, Business Standard and PTI were aware of this and would be ready to accept this on record before police. But it is unfortunate that no police official has tried to confirm this yet with the people who have been witness to this relationship.
• They had come very close to getting married on March 6, 2010. Preparations had been done and the two were to get married at an Arya Samaj temple in Delhi. Several friends and co-workers of both Nirupama and Priyabhanshu had been invited. Some, like Saurabh Dwivedi, News Editor, Dainik Bhaskar, Chandigarh, were even ready with wedding gifts for the couple. Therefore, the very claim that Priyabhanshu was avoiding getting married is baseless. It is evident from the letter written by Nirupama's father to her that her family was totally opposed to this marriage. It comes as a surprise that the mother now claims in a court complaint seeking FIR against Priyabhanshu that it was Priyabhanshu who was averse to getting married.
• It was Nirupama's idea that she should try one more time to get her parents' consent for the marriage. She had the inkling that she would be able to make her parents agree to this alliance, albeit with some difficulty.
• They had been into a physical relationship, with mutual consent. It was on account of neither's behest and it came naturally into the relationship.
• Questions have been raised on Priyabhanshu's lack of knowledge of the pregnancy. Nevertheless, it is a fact that he was not aware of it. But, when the news of her pregnancy came in the autopsy report, he accepted that if she was carrying a child, it definitely was his.
• She had left for Koderma on April 19 and was expected to board her return train on April 28. Between April 20, when she called up before her train reached Koderma station, and April 28 there was no conversation between Nirupama and Priyabhanshu except through SMSes.
• On April 28, when they talked over the phone, she was sobbing and she informed Priyabhanshu that her resignation might have been sent, obviously without her consent. Nirupama's father had actually called up Business Standard to enquire about the process for resignation, emphasizing that Nirupama's mother was so ill that she could not even come to Delhi to put in her papers. He had talked to the Human Resource department of the newspaper and was directed to talk to senior executives for it. During this conversation, Nirupama also informed Priyabhanshu that she would not be allowed to return to Delhi and he should forget her. She also mentioned that she was under strict observation of her family and friends of her brother.
• There have been claims that Nirupama sent eight SMSes to Priyabhanshu between 5:39 am and 7:02 am on April 29. Priyabhanshu denies receiving more than one SMS. If there actually were more SMSes, why could police not retrieve the data from Nirupama’s mobile phone? The details of her phone are yet to be found and it is vital to solve the mystery. Police must recover her mobile phone and details for call and SMSes made.
• The last SMS Priyabhanshu received at 5:39 am on April 29 read:
o “Main aane ki koshish karungi.tum patience rakho. Aur bina mere kahe koi extreme step mat uthana.meri ankita se baat hui hai.tum apne aap ko kuch mat karma.”
o This SMS clearly shows that relationship between them had not turned sour, as has been claimed. In fact, going by the pitch of this SMS, we get a feeling that it was not Nirupama, but Priyabhanshu, who was set to take some “extreme effect” and she was trying to keep his spirits up.
• Another allegation has been that Priyabhanshu picked up Nirupama’s laptop from her room, removed data on the computer and also misplaced some diaries from her room in her absence. The laptop under question was the one that both of them used and it was Nirupama who had given it to him before leaving for home. So far as data are concerned, the device had crashed on April 24. There was some snag in the system and it had to be formatted once earlier also. Even then, it was Priyabhanshu who had got it repaired. As for the misplaced diary, there has been no evidence of one being in the first place.
• There also have been claims that Priyabhanshu drove Nirupama to committing suicide. It does not sound credible that he could have possibly done that, given the limited communication they had after going home. They never spoke between April 20 and April 28. The only pieces of communication between them were through SMSes. In this connection, her SMSes speak better than any person can. Some of them are quoted here:
“Main aa rahi hoon. Mummy ka reservation bhaiya karwayega.tum bas sab (saamaan) jaa kar rakh dena, agar bartan vartan ho toh wo sab bhi”
April 27. 09:34 AM
“Senti marna band karo aur practically socho.mauka mila toh zaroor baat karungi.patience rakho,tumne kaha tha tum patience rakhoge, love you Rajan Jee”
April 21. 09:40 AM

“Will miss you terribly, Rajan Jee”
April 19. 5:35 PM

No girl would send SMSes of this nature to a boy who has been mentally tormenting her to the extent that the girl may contemplate something as grave as suicide. The second SMS also points out to the fact that she was being watched upon and she had to look for opportunities to talk.

गर्भ के बारे में प्रियभांशु को क्यों नहीं पता था

स्त्री रोग विशेषज्ञों का कहना है कि ये संभव है कि निरुपमा को ही ये पता न हो कि वो मां बनने वाली है. डॉक्टर न मैं हूं और न आप. निरुपमा मामले में मेडिकल साइंस के हर तथ्य पर विशेषज्ञों से भी मार्गदर्शन ले रहा हूं. इस बात पर तो सहमत होंगे कि एक डॉक्टर ही इस पर आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने के अधिकारी हो सकते हैं.

जब प्रियभांशु के इस बात से अनजान होने की बात सामने आई तो ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग से आगे की रिपोर्टिंग करने वाले कुछ पत्रकारों ने टीवी पर और अखबार में डॉक्टरों से बात करके ये पता करने की कोशिश की कि क्या ये संभव है जैसा प्रियभांशु कह रहा है. एक लिंक आपकी सेवा में नीचे डाल रहा हूं, आप खुद ही देखें. नवभात टाइम्स में पूनम पांडे ने ये खबर लिखी थी.

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5910443.cms

पोस्टमार्टम शब्द की जगह पर पोस्ट पैर्टम

पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट में पोस्ट-पैर्टम लिखा गया है. पोस्ट-पैर्टम को पोस्ट-नैटल भी कहते हैं. इस अवस्था का संबंध एक बच्चे के पैदा होने के कुछ समय बाद तक माता या पिता को होने वाली शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दिक्कतों से है.

पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट के जिस हिस्से में पोस्ट-पैर्टम शब्द का इस्तेमाल किया गया है वो निरुपमा के गले पर बने फंदे के निशान का विश्लेषण है. इस बात को ध्यान में रखते हुए आप भी समझते होंगे कि वहां पोस्ट-पैर्टम शब्द की कोई जगह ही नहीं बनती है. वहां पर पोस्ट-मॉर्टम या एन्टी-मॉर्टम में से कोई एक शब्द हो सकता था.

रिपोर्ट में वाक्य की संरचना और वाक्य के अंदर तथ्यों के बहाव के लिहाज से ये साफ-साफ नजर आता है कि मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट में पोस्ट-मॉर्टम की जगह पर पोस्ट-पैर्टम लिख दिया है. उम्मीद है आप सहमत होंगे.

क्यों छुपाई मौत की बात परिवार ने

परिवार के लोगों ने मामला सामने आ जाने के बाद भी पुलिस को ये कहा कि ये खुदकुशी है. निरुपमा के पिताजी ने 30 अप्रैल को पुलिस को लिखकर बयान दिया कि उसने खुदकुशी की है और खुदकुशी का कारण उनके परिवार में कोई नहीं जानता.

7 मई को निरुपमा की मां सीजेएम कोर्ट में नालिसी के जरिए पुलिस में एक मुकदमा दर्ज कराती हैं और उसमें कहती हैं कि 29 अप्रैल को उनकी बेटी ने रोते हुए उनसे प्रियभांशु के वादे और धोखाधड़ी के बारे में बताया था. इस नालिसी का मकसद प्रियभांशु को बलात्कार, धोखाधड़ी जैसे संज्ञेय अपराध की धारा में लपेटना था. कोर्ट के ऊपर बिना कुछ कहे ये कहना चाहता हूं कि आप और हम दोनों जानते हैं कि नालिसी कैसे होता है, उसमे क्या होता है और कोर्ट उसमें कैसे काम करता है.

अगर 29 अप्रैल को निरुपमा की मां को प्रियभांशु की धोखाधड़ी के बारे में पता चल चुका था तो इसका मतलब ये है कि उन्हें 30 अप्रैल से पहले ये मालूम रहा होगा कि निरुपमा मां बनने वाली है. लेकिन परिवार के लोगों ने 30 अप्रैल को ये कहा कि उन्हें कारण नहीं पता. इससे साफ है कि निरुपमा के घर वालों को भी नहीं पता था कि निरुपमा मां बनने वाली है. जब पोस्टमॉर्टम से ये पता चला कि वो ढाई से तीन महीने के बीच की गर्भवती थी तभी उसके परिवार को, प्रियभांशु को ये पता चला. अगर उन्हें 29 अप्रैल को ये पता चल गया होता तो 30 अप्रैल को निरुपमा के पिताजी अपने बयान में ही इसका जिक्र करते कि प्रियभांशु ने उनकी बेटी को धोखा दिया, शादी का झांसा देकर संबंध बनाए. लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि इस बात से न तो परिवार और न प्रेमी वाकिफ थे. मां ने बलात्कार का मुकदमा तब दायर किया जब पाठक परिवार को पोस्टमॉर्टम से ये पता चला कि निरुपमा मां बनने वाली थी और जब निरुपमा की मां जेल पहुंच चुकी थीं.

वैसे, प्रियभांशु ने जब ये मान लिया कि अगर निरुपमा मां बनने वाली थी तो बच्चे का बाप वहीं है तो निरुपमा के साथ ही मार डाले गए उस बच्चे से जुड़ी नैतिकता का हर सवाल खत्म हो जाता है. कानून दो व्यस्कों को ये अधिकार देता है कि वो आपसी सहमति से संबंध रख सकते हैं और ऐसा करने के लिए शादी कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. इसलिए हम मानते हैं कि वो लोक-लाज से नहीं, किसी और कारण से निरुपमा की मौत को पुलिस से छुपा रहे थे. आपको भी ऐसा मानना चाहिए.

Where is mobile SIM card of Nirupama

Koderma police has failed to recover the Mobile SIM card of Nirupama which must be with her family as she was at her home while all this incident took place. It is very very vital to obtain the SIM card from the family of Nirupama as family and police are claiming that Nirupama sent around 7-8 SMSs after 5.39 AM on 29th April. Priyabhanshu Ranjan has refuted these claims and said that the last SMS he received from Nirupama was at 5.39 AM on 29th April.

How can police say that they didn't find SIM card but it is the obligation under investigation for them to get the SIM card as it will speak, if something is being hiden by Nirupama's Family or Priyabhanshu. We believe that Family is trying to derail the investigation. They destroyed all evidences, washed away the clothes, house before police come to know the incident.

Police

It is evident from news items coming in large section of Media that Police is now pressurising the Members of Medical Board to change their opinion on autopsy. Today it became public that Koderma Police had requested the Health department to be selective' while securing viscera samples. However, Medical board had clearly mentioned the reason in PM report why they were not preserving viscera. Medical board was constituted by the CMO in which three doctors were members who had done the autopsy. It means whatever observations was made in the PM report of Nirupama, was unanimous.

Scribe death: Koderma docs blame cops for viscera mess
http://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/Scribe-death-Koderma-docs-blame-cops-for-viscera-mess/articleshow/5919770.cms

In addition to this, 3 Member Medical board prepared the postmorterm report on the basis of physical observation of the dead body. We have heard that Koderma Police had consulted AIIMS and now they are seeking advice from RIMS. We want to know whether any medical expert can prepare a PM report on the basis of PM report itself, not the body. We should keep it in the mind that any observation on post morterm report would be only a opinion, not a report. IIMCAA believe that 3 Member team which conducted autopsy is qualified enough and they are saying that they mentioned what they seen and they still stand by it while police is trying to coerce them to change their opinion.

SMS Conversation between Nirupama and Priyabhanshu

We are releasing the SMS conversations between Nirupama Pathak and Priyabhanshu Ranjan in the last few days before her death. These messages clearly show the mutual affection and concern for each other which existed between them. Going through these SMSs we also find that Nirupama and Priyabhanshu were sharing laptops, household items etc. This clearly refutes the claims being made by her family that relation between Nirupama and Priyabhanshu were estranged and he had refused to marry her and in fact cheated her which forced her to commit suicide. The same allegations have been made by Nirupama’s mother in her plea to Koderma court which has ordered to lodge a FIR against Priyabhanshu.

Nirupama’s brother has alleged that Priyabhanshu stole her laptop and other valuable items along with her diaries. What is most unfortunate is that Police is also giving credibility to these accusations and giving feeds to media without bothering to verify the facts.

One of the messages clearly shows that it was Nirpuama who had asked Priyabhanshu to transfer their photographs from the laptop to a pen drive and delete all the material related with Priyabhanshu prior to her return with her mother. However, the laptop in the question had already crashed on 24th April which she was not aware of.

Priyabhanshu used to call Nirupama as Maithili and her name was saved as Ranjans’Maithili in his mobile. This mobile handset has capacity to store 25 sent messages and around 72-75 in inbox. These conversations were transcribed just a day before police quizzed Priyabhanshu in Delhi. At that time, these SMSes were available in hand set and others messages were replace by new SMSes.

INBOX:

• April 29, 2010- 05:39:32
o Main aane ki koshish karoongi. Tum patience rakho. Aur bina mere kahe koi extreme step mat uthana. Meri Ankita se baat huyi hai. Tum apne aap ko kuch mat karna.

• April 28, 2010- 20:52:09
o Main aane ki koshish karoongi. Tum patience rakho. Aur bina mere kahe koi extreme step mat uthana. Meri Ankita se baat huyi hai. Tum apne aap ko kuch mat karna.

• April 28, 2010- 20:00:13
o Main aane ki koshish karoongi. Tum patience rakho. Aur bina mere kahe koi extreme step mat uthana. Meri Ankita se baat huyi hai. Tum apne aap ko kuch mat karna.

• April 27, 2010-09:35:05
o Kal aa rahi hoon yaar

• April 27, 2010-09:34:11
o Main aa rahi hoon. Mummy ka reservation bhaiya karwaiyega. Tum bas sab jaa ke rakh dena. Agar bartan wartan ho toh woh sab bhi.

• April 27, 2010- 09:31:08
o Laptop mein jitna photos hain sabko pen derive mein lekar apne paas rakh lena. Fir laptop se sab delete kar dena.Recycle bin se bhi delete kar dena.Apna CV bhi le lena.Aur aap padh likh rahe hain ya nahin. IPS banna hai na. Take care. Love you a lot.
• April 27, 2010-09:26:14
o Ranjan, mera jitna saman tumhare room pe pada hua hai na woh mere room mein jaa kar rakh dena. Ho sakta hai mummy ke saath aayein.

• April 26, 2010-10:09:17
o Baat nahin kar sakti,samajhte ho na. Maine abhi tak bataya nahin hai ki mujhe parson jaana hai. Papa chale gaye hain. Hope to c u soon. take care

• April 25, 2010-09:12:02
o Aaram se dena. Nervasaiyega nahin. All the best. Hope to c u soon.

• April 24, 2010-10:24:11
o Kaise ho? Hum theek hain. Sorry baat nahin kar paati. Roz jab nahane aati hoon toh bathroom se message karti hoon. Audition ke liye all the best.

• April 23, 2010-10:26:47
o Kya haal hai. Dekh lo, agar Jaipur jane ka bahut mann hai toh chale jao. Khayyam ka message aaya tha ki DD mein vacancy hai. Pata karke batana. Aur hum theek hain. Tum theek se rehna.

• April 21, 2010-09:49:30
o Abey senti marna band karo aur practically socho. Mauka mila toh zaroor baat karungi. Patience rakho. Tumne kaha tha ki tum patience rakhoge. Luv you Rajjan ji.

• April 21, 2010-09:38:24
o Phone bag mein rehta hai aur waise bhi utha nahin paoongi. Mauka milte hi message kiya karoongi. Mujhe kuch nahin hoga. I love you. aaram se rehna. Tension mat lo.

• April 21, 2010-09:35:20
o Main bilkul theek hoon. Tum patience rakho.

• April 21, 2010-08:43:56
o SMS from Ankita: Abhi maine try kiya woh utha nahin rahi. Main jab bhi class se free hoon, I'll try constantly and call you immediately. Zyada tension mat lo. Sab theek hoga. take care.

• April 19, 2010-17:35:23
o Will miss you terribly Rajjanji

• April 18, 2010-20:07:13
o Tumne baal katwaya nahin na?

• April 16, 2010-02:36:08
o Love you Rajjan ji. Sachi kasam se

• April 14, 2010- 01:52:47
o Subah aane se pehle ek baar phone kar lena. Luv

• April 10, 2010-23:25:32
o I luv you

SENT ITEMS OF PRIYABHANSHU

• April 29, 2010, Not sent to Ranjans Maithlil
o Maithili mobile off kyun hai? Sab theek to hai na? Tum theek toh ho na? Tumhara message humko mil gaya tha. Luv you. Take care

• April 29, 2010-07:02:34
o Kal jo hum tumko 8-9 message poore din mein bheje woh deliver hua tha? Yadi haan toh batao kyunki ek ka bhi delivery report nahin aaya. Maithili please aa jao. I love you.

• April 28, 2010-23:35:35
o Hum kahe the na "Ho chandni jab tak raat, har koi deta saath, tum magar andheron mein na chhodna mera haath"? Yaqueen hai ki Maithili mera saath kabhi nahin chhodegi.

• April 28, 2010-22:50:58
o Maithili apne kaha tha ki aap zaroor ayengi. Jaanti hain na apke bina apke Rajjan ji jee nahin sakte. "Mujhe bhool jao" kehne se pehle ek baar bhi nahin socha apne.

• April 28, 2010-20:17:40
o Tumhe koshish nahin karna balki aana hai.Tumko aane ka constant effort karna hai aur parents ko yeh ehsaas nahin hone dena hai ki tumne surrender kar diya hai. luv you a lot.

• April 28th,2010-15:35:32
o Maithili hum pata kiye hain, tumhare office mein resignation ka koi mail/fax nahin bheja gaya hai. bas papa HR ko phone karke yeh poochhe the ki resignation ka process kya hai. Papa bole ki Nirupama ki mummy ki halat kaafi serious hai so she has to resign immediately. Maithili tum plz notice period serve karne ke bahane se aa jao. Humko reh reh kar mar jane ka mann kar raha hai. Tumhare bina jee nahin payenge hum. Chaho toh ek hafte ka waqt le lo. Hum ticket karwa dete hain. Plz kuch baat toh karo humse nahin toh hum tumhare papa aur bhaiya se baat karenge.

• April 28,2010-13:50:32
o Maithili tum apne saath kuch paise aur mobile lekar ghar se nikal jao. Kaho toh Ranchi se flight ki ticket book karva dein ya hum khud wahan tumko lene aa jayen.

CJM order to register FIR of Suicide


Mother Court Complain against Priyabhanshu




Alleged Suicide Note of Nirupama

Injury Mark on Nirupama's Head


FIR by police of Nirupama's Murder


Post mortem report of Nirupama

Statement of Nirupama's Father claiming Suicide

Letter of Father to Nirupama