निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- अंतिम कड़ी
निरुपमा के पिताजी धर्मेंद्र पाठक ने 30 अप्रैल को पुलिस को दी लिखित सूचना में कहा, ‘...खोजबीन के क्रम में निरुपमा के बेड के नीचे से एक सुसाईडल चिट्ठी भी उसके लिखावट में मिला. जिसमें उसने मृत्यु पर किसी पर दोषारोपण नहीं लगाई है. और न ही हत्या का कारण बताई है. हमारा दावा है कि निरुपमा कुमारी किसी अंदरूनी कारण से, जो हम सभी परिवार नहीं जानते हैं, के कारण फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है’.
निरुपमा की मां 7 अप्रैल को सीजेएम कोर्ट के जरिए थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में लिखती हैं, ‘...दिनांक 29/4/2010 को मृतका निरुपमा पाठक द्वारा लगातार रोने की क्रिया-कलाप को देखकर मृतका की मां ने जब अपनी बच्ची से पूछा तो वह अपनी माता को मुद्दालय द्वारा किए गए वादे और धोखाधड़ी के बारे में बताया.’
निरुपमा के पिताजी ने पुलिस को दिए बयान में ही एक बार लिखा है “... न ही हत्या का कारण बताई है...” क्या एक राष्ट्रीयकृत बैंक में काम कर रहे पढ़े-लिखे पाठक जी हत्या और आत्महत्या का अंतर नहीं समझते या जाने-अनजाने में वो वह सच लिख बैठे जिसे छुपाने की जी-तोड़ कोशिश में उन्होंने पूरे परिवार को झोंक रखा है.
धर्मेंद्र पाठक 30 अप्रैल को लिखकर देते हैं कि उनके और उनके परिवार को नहीं मालूम है कि निरूपमा ने ऐसा क्यों किया. मतलब परिवार को 30 अप्रैल तक यह पता नहीं था कि निरुपमा ने खुदकुशी क्यों की. लेकिन अचानक जब हत्या के आरोप में मां जेल चली जाती हैं तो 7 मई को कोर्ट के आदेश पर दर्ज प्राथमिकी में निरुपमा की मां दावा करती हैं कि 29 अप्रैल को ही निरुपमा ने उनसे रोते हुए बताया था कि उसके साथ प्रियभांशु ने धोखाधड़ी की है.
हम किसे सच मानें, पिता को जो पत्नी के बताने के आधार पर पुलिस में लिखित बयान देते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को खुदकुशी का कारण नहीं मालूम है या मां को जो एक हफ्ते बाद प्रियभांशु पर कानूनी दबाव बनाने के मकसद से दायर नालिसी में दावा करती हैं कि उन्हें 29 अप्रैल को ही प्रियभांशु की धोखाधड़ी के बारे में पता चल गया था.
हम बार-बार कहते रहे हैं और फिर दोहराते हैं कि पाठक परिवार 29 अप्रैल से लगातार झूठ बोल रहा है. झूठ बोलने का नुकसान है कि आपको उसे हमेशा याद रखना पड़ता है. पहले परिवार ने कहा कि निरुपमा की मौत करंट लगने से हुई है. फिर कहा कि पंखा से लटककर उसने खुदकुशी की है. फिर कहा गया कि निरुपमा की मां ने पड़ोसियों की मदद से शव को नीचे उतारा. उसके बाद कहा गया कि निरुपमा की मां ने अकेले ही शव को उतार लिया.
इस परिवार ने इतने झूठ बोले हैं कि उसकी गिनती नहीं है. झूठ बोलने के कारण पाठक जी का परिवार खुद ही नंगा हो रहा है. हम मानते हैं कि ये ऑनर किलिंग का मामला है और पुलिस ने निरुपमा के घर वालों को खुला छोड़कर उन्हें सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और उसे नष्ट करने की पूरी छूट दी. पाठक परिवार ने पुलिस से मिली इस छूट का पूरा फायदा भी उठाया.
सुसाइड नोट का सच?
सुसाइड नोट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया है लेकिन अंत में चार लाइन हिन्दी में भी लिखा गया है जिसमें निरुपमा ने अपना अंतिम संस्कार गया में करने की गुजारिश की है. सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में लिखी गई बातें और हिन्दी में लिखी गई गुजारिश उसकी लिखावट से मेल खाती हैं, ये प्रियभांशु और उसके दोस्तों ने पुलिस को बताया है. लेकिन सुसाइड नोट में अंग्रेजी के कुछ शब्दों को तोड़ दिया गया है जो एक शब्द हैं और निरुपमा ऐसी गलतियां नहीं करती थी. ये संदेह पैदा करता है कि उससे जबरन यह नोट लिखवाया गया होगा.
इस सुसाइड नोट को निरुपमा ने लिखा या नहीं लिखा, स्वेच्छा से लिखा या इसे उससे जबर्दस्ती लिखवाया गया, ये सिर्फ निरुपमा ही जानती होगी या उससे जबरिया लिखवाने वाले. पुलिस और फॉरेंसिक टीम की जांच से भी इसमें से कुछ बात सामने आ सकती है.
लेकिन निरुपमा को न्याय अभियान इस बात को पचा नहीं पा रहा कि उसने खुदकुशी की होगी. 28/29 अप्रैल तक की उसकी बातचीत या एसएमएस से कहीं से ऐसा नहीं लगता कि उसने खुदकुशी की कोई सोच बनाई थी. इस सुसाइड नोट पर तारीख के साथ भी छेड़छाड़ की बात सामने आई है.
एक और बात जिसको लेकर संदेह पैदा होता है. निरुपमा के सुसाइड नोट पर अंग्रेजी में दस्तखत के नीचे हिन्दी में भी एक दस्तखत किया गया है. सवाल यह है कि निरुपमा ने जब अंग्रेजी में दस्तखत कर दिया था तो उसे दोबारा हिन्दी में दस्तखत करने की जरूरत क्या थी. क्या हम-आप किसी भी पेपर पर अंग्रेजी और हिन्दी में एक साथ दस्तखत करते हैं या सिर्फ एक ही दस्तखत करते हैं.
आप भी देखिए निरुपमा के सुसाइड नोट पर हिन्दी में उसके दस्तखत को और बगल में हिन्दी में लिखी गई उन चार पंक्तियों को. क्या दोनों की लिखावट एक लगती है, किसी अक्षर से, शब्द और अक्षर लिखने के तौर-तरीके से, अक्षरों की किसी गोलाई से. हमारी आंखों को तो ऐसा लगता है कि सुसाइड नोट पर हिन्दी का हस्ताक्षर निरुपमा का नहीं है. बल्कि अगर नीचे लगाई गई उसके पिता धर्मेंद्र पाठक की चिट्ठी, उसके पिता धर्मेंद्र पाठक का हस्ताक्षर देखें तो आपको मसहूस होगा कि निरुपमा के हिन्दी दस्तखत का ज्यादातर हिस्सा उनके पिता की लिखावट और उनके दस्तखत से मेल खाता है. आप खुद देखिए और तय कीजिए कि निरुपमा का हिन्दी हस्ताक्षर उसकी लिखावट से मेल खाता है या उसके पिताजी की लिखावट से.
अगर खुदकुशी तो जिम्मेदार कौन ?
इस संदर्भ में चलते-चलते एक और बात. हम कतई नहीं मानते कि निरुपमा ने खुदकुशी की है लेकिन एक पल के लिए मान भी लें कि यह “सुसाइड नोट” सही है जैसा पाठक परिवार दावा कर रहा है तो इसके मुताबिक निरुपमा ने अपनी कथित “सुसाइड” के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया है. फिर किस आधार पर पाठक परिवार निरुपमा की कथित “सुसाइड” के लिए प्रियभांशु को जिम्मेदार ठहरा रहा है? लेकिन पाठक परिवार क्यों परवाह करे जो निरुपमा के बाद अब सच की हत्या करने पर तुला हुआ है.
सबसे बड़ी बात, अगर ये खुदकुशी थी तो खुदकुशी के लिए निरुपमा को मजबूर तो उसके परिवार ने किया जो उसे पसंद का जीवनसाथी नहीं चुनने दे रहा था. टिकट कटे होने के बावजूद 28 अप्रैल को निरुपमा को दिल्ली आने से रोक लिया गया, निरुपमा के अखबार के दफ्तर में फोन करके इस्तीफे की बात की गई. बातचीत पर ऐसी पाबंदी लगाई गई कि उसे बाथरूम में जाकर एसएमएस करना पड़ा. एक तरह से निरुपमा की जिंदगी पर ‘सनातनी सरकार’ ने कर्फ्यू लगा रखा था. इसी आशंका से निरुपमा 14 अप्रैल को ही मां की बीमारी की खबर मिलने के बावजूद तुरंत कोडरमा आने का फैसला नहीं कर पाई और 17 अप्रैल को टिकट कटाकर 19 अप्रैल को चलकर 20 अप्रैल को कोडरमा पहुंची.
कोई बाप अपनी पसंद से बाहर शादी की चाहत के एवज में बेटी को जितनी मानसिक यातना दे सकता है, धर्मेंद्र पाठक ने उसमें कोई कसर नहीं रखी. पाठक परिवार को तो खुदकुशी के उनके ही दावे के हिसाब से भी खुदकुशी के उकसावे की सजा के लिए तैयार रहना चाहिए. इस मामले में मुख्य आरोपी ‘सनातनी चिट्ठी’ के लेखक निरुपमा के पिता धर्मेंद्र पाठक ही होंगे और घटना के दिन कोडरमा में न होने की उनकी दलील भी इसमें काम नहीं आएगी.
निरुपमा पाठक की हत्या से जुड़े हर उस तथ्य को हमने पिछले छह दिन में सामने रखा है जो हमारे पास उपलब्ध हैं. पुलिस जांच में अगर इससे अलग कुछ ऐसा मिला हो जो अब तक मीडिया में न आया हो तो हमें उससे अनजान माना जाए. निरुपमा की मौत के सच और झूठ की तलाश की यह लिखित श्रृंखला फिलहाल खत्म हो रही है. निरुपमा को न्याय अभियान यकीन दिलाता है कि निरुपमा के हत्यारों को सजा दिलाए बगैर हम चैन से नहीं बैठेंगे. हमें भरोसा है कि निरुपमा को न्याय दिलाने के संघर्ष में जब और जिस रूप में हमें आपकी मदद की जरूरत पड़ी, आप हमारे साथ होंगे.
साभार- मोहल्ला
Tuesday, June 1, 2010
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ham aapko yajin dilate hain ki jab bhi jis bhi roop me niroopama ko nayay dilwane k lie aapko hamari jaroorat padegi ham wahan maujood rahenge....
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