Thursday, May 27, 2010

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर यकीन न करने की वजह नहीं

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- दूसरी कड़ी

निरुपमा के पिताजी और भाई के घर आने के बाद 30 अप्रैल को निरुपमा पाठक के शव का पोस्टमार्टम किया गया. पोस्टमार्टम विश्वसनीय, सटीक और स्पष्ठ हो इसके लिए एक डॉक्टर की बजाय मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की मांग आईआईएमसी एल्युमनी एसोसिएशन के सदस्यों ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक, कोडरमा के उपायुक्त और आरक्षी अधीक्षक को फैक्स भेजकर की थी.

निरुपमा को न्याय अभियान कोडरमा प्रशासन की तारीफ करना चाहता है कि उसने मेडिकल बोर्ड बनाने का फैसला लेके राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पाठक परिवार की तरफ से पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ मन-मुताबिक छेड़छाड़ की तमाम संभावनाओं को खारिज कर दिया. 30 अप्रैल को पोस्टमार्टम हुआ. 2 मई को उसकी रिपोर्ट आई. रिपोर्ट में ये साफ तौर पर लिखा गया कि निरुपमा पाठक की मौत का कारण स्मॉदरिंग के कारण दम घुटना है.

स्मॉदरिंग के जरिए हत्या वह क्रूर प्रक्रिया है जब किसी की नाक और मुंह को एक ही बार दबाकर उसकी सांस रोक दी जाए. दम घुटने से मौत के मामलों में पोस्टमार्टम के लिए डॉक्टर समुदाय ने आम तौर पर तीन टर्म तय किए हैं. जब आदमी की मौत फांसी पर झूलने से हो तो उसे डॉक्टर एसफिक्सिया एज ए रिजल्ट ऑफ हैंगिंग लिखते हैं. जब किसी की गला दबाकर हत्या की जाती है तो उसमें एसफिक्सिया एज ए रिजल्ट ऑफ स्ट्रैंगुलेशन लिखा जाता है और जब किसी की हत्या नाक और मुंह दबाकर की जाए तो उसे एसफिक्सिया एज ए रिजल्ट ऑफ स्मॉदरिंग लिखते हैं.

डॉक्टरों का कहना है कि मेडिकल इतिहास में स्ट्रैंगुलेशन और स्मॉदरिंग का कोई भी मामला खुदकुशी का नहीं मिला है. यानी जब भी मौत के कारण में स्मॉदरिंग या स्ट्रैंगुलेशन लिखा हो तो यह माना जाता है कि पीड़ित या पीड़िता की हत्या हुई है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर कुछ सवाल उठे. मौत का समय छोड़ दिया गया. विसरा नहीं रखा गया. भ्रूण भी नहीं सहेजा गया. एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट किसी शव के बारे में कई तरह की सूचना का समेकित दस्तावेज होता है. इसमें मौत के कारण, समय के अलावा और भी कई चीजें शामिल हैं.
पोस्टमार्टम के लिए बनाए गए तीन डॉक्टरों के बोर्ड ने पोस्टमार्टम हाउस के बाहर पाठक परिवार और मीडिया की मौजूदगी में शव का अन्त्यपरीक्षण किया और पाया कि निरुपमा के गले की हड्डी नहीं टूटी है. उसके गले पर बना फंदे का निशान मौत के बाद का है. मौत का कारण स्मॉदरिंग के कारण दम का घुटना है.

मेडिकल बोर्ड ने यह राय एकमत रूप से दी. मौत का समय लिखना मेडिकल बोर्ड के सदस्य भूल गए जिसे बाद में सुधार लिया गया. विसरा नहीं रखने की वजह मेडिकल बोर्ड ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ही साफ कर दी और साफ-साफ लिखा कि विसरा रखने की जरूरत नहीं है.

फिर ये विवाद पैदा किया गया कि पोस्टमार्टम टीम में शामिल एक डॉक्टर का यह पहला पोस्टमार्टम था. यह बहुत गहराई से समझने की जरूरत है कि मेडिकल बोर्ड में अपनी जिंदगी का पहला पोस्टमार्टम कर रहे डॉक्टर साहब के साथ दो और डॉक्टर साहब भी थे जिन्होंने इससे पहले भी कई पोस्टमार्टम किए थे. मौत का कारण सिर्फ अपने करियर का पहला पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर साहब ने नहीं लिखा था, बाकी दोनों डॉक्टर साहब भी उस रिपोर्ट को तैयार करने में शामिल थे. ऐसा नहीं था कि नए वाले डॉक्टर साहब ने अवलोकन का नतीजा दिया और बाकी दोनों ने अनुशंसा या संस्तुति की. तीनों डॉक्टर पोस्टमार्टम के दौरान मौजूद थे, तीनों ने अपनी-अपनी आंखों से देखा और नतीजा एक पाया. मेडिकल बोर्ड का गठन इसी उद्देश्य से तो किया जाता है कि डॉक्टरों की एक बड़ी टीम की राय मिल सके और निरुपमा के मामले में तीन डॉक्टर इस बात पर एकमत हैं कि ये हत्या है, खुदकुशी नहीं.

एक और बात, जिन डॉक्टर साहब के करियर का पहला पोस्टमार्टम था वो भी मेडिकल की शिक्षा और डिग्री लेकर ही नौकरी में होंगे. उन्हें तय रूप से उनकी मेडिकल शिक्षा के दौरान पोस्टमार्टम करना सिखाया गया होगा. इसलिए यह कहना कि ये एक डॉक्टर का पहला पोस्टमार्टम था, रिपोर्ट में दर्ज मौत के कारण पर सवाल नहीं उठा सकता. कई सारे पोस्टमार्टम कर चुके अनुभवी डॉक्टर भी अपने करियर में कभी न कभी पहला पोस्टमार्टम करते होंगे.

मेडिकल बोर्ड ने विसरा नहीं रखने की वजह रिपोर्ट में ही लिख दी. भ्रूण को सुरक्षित नहीं रखने के उनके फैसले पर भी सवाल उठाए गए हैं. भ्रूण क्यों नहीं रखा गया ये तो डॉक्टर साहब लोग ज्यादा बेहतर जानते होंगे लेकिन अपनी समझ है कि अगर दुर्भाग्य से विवाद पैदा हुआ होता तो बच्चे के पिता की पड़ताल में इससे मदद मिलती. लेकिन प्रियभांशु रंजन ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि अगर निरुपमा गर्भवती थी तो बच्चा उसका ही था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट की समीक्षा करते वक्त विशेषज्ञ विसरा और भ्रूण नहीं रखने के मेडिकल बोर्ड के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं. कोई विशेषज्ञ सीधे उनके अवलोकन के नतीजे यानी मौत के कारण पर सवाल नहीं उठा रहा. विधि द्वारा स्थापित किसी भी कोर्ट में किसी की अप्राकृतिक मौत का कारण बताने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही वैध दस्तावेज होता है और निरुपमा के मामले में यह रिपोर्ट कहता है कि उसकी हत्या की गई है.

एम्स के एक विशेषज्ञ साहब ने झारखंड पुलिस को बताया कि मौत का यह मामला उन्हें खुदकुशी ज्यादा प्रतीत होता है. उनके पास पुलिस ने राय बनाने के लिए दो चीजें मुहैया कराई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट और शव की नजदीक से ली गई तस्वीरें. कागज पर लिखे गए पोस्टमार्टम रिपोर्ट को देखकर तो किसी की मौत के कारण पर कोई राय बनाई ही नहीं जा सकती क्योंकि उसके लिए शव को देखना पड़ता है.

विशेषज्ञ साहब ने निश्चित रूप से निरुपमा की तस्वीरों को देखकर राय बनाई होगी. हम भी इसी तस्वीर की बात करते हैं. इस तस्वीर में निरुपमा के गले पर जो फंदे का दाग है, वह कंठ पर है. विशेषज्ञ साहब ने पता नहीं इस बात का ख्याल क्यों नहीं रखा कि पाठक परिवार यह कह रहा है कि निरुपमा पंखे से झूली है. पंखे की ऊंचाई से झूलने पर निरुपमा के बराबर वजन के किसी शख्स के गले पर फंदे का निशान कहां आएगा, क्या विशेषज्ञ साहब इसे सही से नहीं जोड़ पाए.

ये विशेषज्ञ साहब देश के सबसे बड़े अस्पताल के डॉक्टर हैं. उनके अस्पताल में पंखे या ऊंचाई से फंदा लगाकर खुदकुशी के कई मामले आए होंगे. उनके शवों की तस्वीर की लाइब्रेरी चेक करने पर शायद वो अपनी राय बदल पाएं. अनुभव कहता है कि ऐसे मामलों में फंदे का निशान सामने से ठुढ्ढी के थोड़ा नीचे लेकिन गर्दन के ऊपर बनता है और पीछे गर्दन के ऊपर चला जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फंदा शरीर के वजन के कारण उस हद तक ऊपर खिंच जाता है जहां से और आगे वह न जा सके. निरुपमा के गले पर बना निशान वो जगह नहीं है जहां कोई फंदा अटक जाए.

कुछ दिन पहले अखबारों में झारखंड के डीजीपी नियाज़ अहमद साहब के हवाले से खबर आई कि उन्हें उस फॉरेंसिक टीम ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है जो हत्या का मामला दर्ज होने के दो-तीन बाद निरुपमा के घर का बारीकी से मुआयना करने रांची से कोडरमा गई थी. पुलिस दूसरी खेप में 17 मई को भेजे गए सामानों के फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार कर रही है.

घटनास्थल का मुआयना करने वाली पहली फॉरेंसिक टीम ने रिपोर्ट में कहा है कि जिस पंखे से निरुपमा के झूलने की बात कही गई है, वह पंखा पूरी तरह सुरक्षित है, पूरी तरह ठीक-ठाक है. मानो कोई भार उस पर पड़ा ही न हो. जब उस पर कोई भार ही नहीं पड़ा तो इसका मतलब ये है कि निरुपमा पंखे से नहीं झूली और अगर पंखे से नहीं झूली तो खुदकुशी की यह कहानी सच नहीं है.

इस फॉरेंसिक टीम ने भी कहा कि फंदे का निशान गर्दन पर जिस जगह और जिस तरह से बना है, वो पंखे से फांसी झूलने के बाद नहीं बनता. हमें यकीन है कि दूसरे दौर की फॉरेंसिक रिपोर्ट कुछ और सच सामने लाएगी.

निरुपमा को न्याय अभियान का भी मानना है कि निरुपमा के गर्दन पर फंदे का दाग मौत के बाद का है, इसलिए निरुपमा की मौत खुदकुशी नहीं है. फंदे के इस निशान को अगर मौत से पहले का पाया गया होता तो भी यह हैंगिंग न होकर स्ट्रैंगुलेशन होता और वो भी हत्या के दायरे में ही आता है.

साभार- मोहल्ला

1 comment:

  1. niroopamaa ne aatmahatya nahi ki..wo to jeen achaahti thi..apne lie ..ek khushiyon bhare sansaar k sapne dekh rahi thi wo ..kuch had tak jee bhi rahi thi apne sapnon ko..jis ladki me jeene ki itni jijivisha ho wo kabi aatmahatya nahi kar sakti..ye sarasar hatya hai..khooni hain uske gharwale..

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