Thursday, May 27, 2010

रस्सी या दुपट्टा, दोनों में से कुछ नहीं ?

निरुपमा हत्याकांडः झूठ और सच की परतें- तीसरी कड़ी

निरुपमा के पिता धर्मेंद्र पाठक ने गोंडा से कोडरमा पहुंचने के बाद 30 अप्रैल को पुलिस को अपनी पत्नी सुधा पाठक के हवाले से लिखित बयान दिया, ‘....तो उसे पंखा से लटका मृत पायी. अगल-बगल के लोगों के सहयोग से उसे फांसी लगा रस्सी से नीचे उतारा गया’.

खुद निरुपमा की मां सुधा पाठक ने जब 7 मई को सीजेएम कोर्ट में नालिसी दायर किया तो उसमें वो लिखती हैं, ‘...कमरे के पंखे से अपना दुपट्टा का फंदा लगाकर आत्महत्या किया हुआ पाया.’

निरुपमा की मौत को आत्महत्या मानने वाले पत्रकारों ने लिखा है कि पुलिस से पूछताछ में निरुपमा की मां ने बताया, ‘मैं दौड़ कर पलंग पर चढ़ी और उसके गले में लगे फंदे को खोली. निरुपमा पलंग पर गिर गई. मेरे चिल्लाने की आवाज सुनकर कई लोग अंदर आ चुके थे. मैं दौड़कर सामने के बाथरूम में जाकर पानी लाई और निरुपमा के चेहरे पर जोर-जोर से मारने लगी. उसी दौरान निरुपमा की कराह सुनने को मिली और उसके बाद आस-पड़ोस से आए लोगों के साथ मिलकर पार्वती नर्सिंग होम ले गए जहां डॉक्टर ने उसे देखने के बाद मृत घोषित कर दिया.’

क्या निरुपमा के परिवार को रस्सी और दुपट्टे का अंतर नहीं पता है. उसके पिताजी जिसे रस्सी कह रहे हैं, उसकी मां उसे दुपट्टा कह रही हैं. पिता ने कहा कि पास-पड़ोस के लोगों की मदद से निरुपमा का शव पंखे से उतारा गया. मां ने पुलिस को बताया कि उन्होंने अकेले ही ऐसा कर लिया.

यहां यह बताना जरूरी है कि निरुपमा को जब मां की बीमारी की खबर देकर घर बुलाया गया था तो भाई समरेंद्र पाठक ने यह बताया था कि मां की रीढ़ की हड्डी टूट गई है. ऐसा निरुपमा ने प्रियभांशु और अपने दफ्तर के मित्रों से कहा था. निरुपमा की मां पीठ की बीमारी से परेशान हैं, ऐसा टीवी पर दिखी उनकी तस्वीरों से लगता है. बावजूद सुधा पाठक ने अकेले निरुपमा का शव पंखे से उतार लिया, यह कहना जितना आसान है, पचाना उतना ही मुश्किल है.

मां ने पुलिस को यह भी बताया है कि निरुपमा के शरीर के पलंग पर गिर जाने के बाद उन्होंने पानी का छींटा मारा तो वो कराह उठी. उसके बाद उसे पार्वती अस्पताल ले जाया गया. पिताजी ने पुलिस को लिखकर दिया कि उसे पंखे पर ही मृत पाया गया. जब पंखे पर ही निरुपमा की मौत हो चुकी थी तो नीचे गिरने के बाद वो कैसे कराह सकती है.

यह याद रखना बहुत जरूरी है कि 30 अप्रैल को धर्मेंद्र पाठक ने पुलिस को जो लिखित बयान दिया वो उन्होंने अपनी पत्नी का हवाला देते हुए दिया था. सुधा पाठक ने हत्या के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद प्रियभांशु को दबाव में लेने के मकसद से 7 मई को नालिसी दायर की तो बयान बदल गया, तथ्य बदल गए. फिर याद दिलाना चाहता हूं कि झूठ बोलने का नुकसान ये है कि उसे हमेशा याद रखना पड़ता है और सच खुद-ब-खुद सामने आ जाता है.

हमने अब तक किसी डॉक्टर से इस बारे में नहीं पूछा है लेकिन हम जरूर पता करेंगे कि क्या फांसी के फंदे से उतारने के बाद अगर किसी में इतनी जान बची हो कि वो कराह उठे तो क्या यह संभव है कि उसकी जान चली जाए क्योंकि ऑक्सीजन की आपूर्ति तो फंदा से मुक्त होते ही बहाल हो चुकी होती है.

हमारी जानकारी यह है कि निरुपमा के शव को उनकी मां के अलावा किसी और ने पंखे से लटका हुआ नहीं देखा. जिसने भी देखा, सबने पलंग पर ही देखा. एक अपुष्ट खबर है, पुलिस को शायद सच पता हो, जब निरुपमा की मां से फंदे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने किसी दूसरे कमरे से लाकर एक दुपट्टा दिया. अगर ऐसा है तो सवाल ये उठता है कि पंखे से शरीर नीचे गिर गया था लेकिन फंदा कैसे गिरा और गिरा तो दूसरे कमरे में कैसे चला गया. हो सकता है कि हमारी ये जानकारी गलत हो क्योंकि हम कोडरमा के बारे में सिर्फ सुनी-सुनाई या पुलिस रिकॉर्ड में आई बातों को ही जान पाते हैं.

हमें उम्मीद है कि इसका जवाब पुलिस की जांच से सामने आ जाना चाहिए. कोडरमा में निरुपमा ही थी जिसे हम जानते थे. वो नहीं है तो हमारी सोच, हमारी राय का कोडरमा में कोई मोल नहीं है. हमें कोडरमा में हो रही चीजें मीडिया से पता चलती हैं. कोडरमा के कुछ लोगों को लगता है कि प्रियभांशु ने ब्राह्मण न होते हुए भी एक ब्राह्मण लड़की से प्यार करके, शादी से पहले उसे मां बनाकर बहुत बड़ा गुनाह किया है और इसके लिए उसे फांसी की सजा मिलनी चाहिए.

हम सनातनी गैंग की ये हसरत पूरी नहीं होने देंगे क्योंकि ये देश संविधान के दायरे में केंद्र सरकार के बनाए कानूनों और समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसलों के हिसाब से चलता है. हमारा यकीन है कि कानून और कोर्ट के लिहाज से प्रियभांशु ने कोई भी गैर-कानूनी काम नहीं किया है.

साभार- मोहल्ला

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